Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परोक्ष दर्शन- रात्रि को बारह बजे मंदिर में जाने पर यदि ठाकुर जी शयन कर गए हों तो बिना दर्शन किए लौटना पड़ता है। परंतु यदि हम परोक्ष दर्शन की पराकाष्ठा पर पहुंच गए हों तो स्वयं के हृदय में ही ईश्वर का दर्शन किया जा सकता है।
आत्म स्वरूप में परमात्म स्वरुप का अनुभव ही परोक्ष दर्शन की अंतिम पराकाष्ठा है। भगवान गोलोक में विराजते हैं- यह ज्ञान साधारण ज्ञान है। यह ज्ञान हमारे लिए अधिक उपयोगी नहीं बनता। सच्ची सार्थकता तो गोलोक में विराजने वाले भगवान को अपने हृदय प्रदेश में स्थापित करके अपनी आत्मा में ही परमात्मा का अनुभव करने में है।
अमुक कार्य करने से अमुक फल मिलेगा ‘ मात्र ऐसे ज्ञान से काम नहीं बनता। दुःख और दारिद्र की निवृत्ति तो ज्ञानपूर्वक हाथ में शस्त्र लेकर जुट जाने से होगी।अतः ज्ञान को स्वभाव में लाने की आदत अवश्य डालनी चाहिए। पुत्र से नहीं, सद् गती तो अपने सत्कर्मों से प्राप्त होती है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).