Ancient Temple of Lord Shiva: सावन के पावन महीने की शुरुआत होते ही देश के सभी प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए भक्तों की लंबी-लंबी लाइन लगी है. ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित भगवान शिव के ऐसे ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जहां खंडित शिवलिंग की पूजा होती है. यह मंदिर बिरसिंहपुर में गैवीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. इस शिवलिंग को उज्जैन महाकाल का दूसरा उपलिंग भी कहा जाता है.
जानिए पौराणिक महत्व
पद्म पुराण के अनुसार त्रेता युग में बिरसिंहपुर कस्बे के राजा वीरसिंह बाबा महाकाल के बहुत बड़े भक्त थे. वे महाकाल को जल चढ़ाने के लिए घोड़े पर सवार होकर उज्जैन महाकाल दर्शन करने के लिए जाते थे. जैसे-जैसे उनकी उम्र ढलती गई, उन्हें परेशानी होने लगी तो उन्होंने महाकाल से अपनी नगरी में दर्शन देने के लिए आग्रह किया, जिसके बाद भगवान महाकाल ने एक रात राजा वीर सिंह को स्वप्न में आकर बताया कि मैं देवपुर में दर्शन दूंगा, और भगवान भोलेनाथ गैविनाथ के नाथ रूप में प्रकट हुए.
बता दें कि इसे महाकाल एकमात्र दूसरा उप शिवलिंग माना जाता है. जो स्वयंभू स्थापित शिवलिंग है. विदेशी आक्रमणकारियों ने यहां सोना पाने के लालच में इस शिवलिंग को खंडित करने का प्रयास किया था. इस मंदिर में सावन माह में भक्तों की भारी भीड़ लगती है. इस दौरान भगवान गैविनाथ का श्रृंगार किया जाता है जिससे स्थान की दिव्यता और भव्यता देखते ही बनती है.
पौराणिक मान्यतानुसार गैवीनाथ धाम में चारधामों का जल चढ़ता है. ऐसी मान्यता है कि जितना चारों धाम में भगवान के दर्शन करने से पुण्य मिलता है. उससे कहीं ज्यादा गैवीनाथ में चारों धाम का जल चढ़ाने से मिलता है. इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि चारधाम करके आने के बाद वहां का जल अगर यहां नहीं चढ़ाया तो चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और विभिन्न जानकारियों पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)