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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, युधिष्ठिर का अर्थ है धर्म। भीम का मतलब है बल, शक्ति। अर्जुन का मतलब है आत्मा, नकुल का मतलब है रूप और सहदेव का मतलब है ज्ञान। राजा धार्मिक हो और शासन में धर्म हो ऐसी गीता में भगवान की इच्छा है। जब जब संसार में धर्म की हानि होती है और जब समाज में अधर्म पुष्ट रहा होता है, समाज में संतों को पीड़ा दी जाती है और दुर्जनों को उसमें आनंद मिल रहा होता है, तब भगवान दर्शक बनकर बैठे नहीं रहते। सज्जनों के पक्षधर बनाकर अवतार लेते हैं।
समाज में सज्जन निष्क्रिय होते हैं और दुर्जन सक्रिय होते हैं, सज्जनों में अकर्मण्यता व्याप्त होती है और दुर्जन कर्मठ बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में हाथ पर हाथ धरकर ईश्वर बैठे नहीं रहते हैं।अनासक्त होकर जिओगे तो कोई हर्ज नहीं है। सोने की द्वारिका में रहना कोई अपराध नहीं है, मगर सोने की द्वारिका नीति की नींव पर खड़ी होनी चाहिए। संसार में रहोगे मगर श्रीकृष्ण की तरह अनासक्त बनकर जिओगे तो श्रीकृष्ण की कृपा आप पर बरसेगी ही।
दूध में घी होता ही है मगर दूध में से घी को प्रगट करना पड़ता है। दूध में से दही, दही से छाछ, छास में से मक्खन और मक्खन में से घी। इसी तरह परमात्मा व्यापक है। उसे केवल प्रगट करना पड़ता है।’ हरि व्यापक सर्वत्र समाना।’ हरि व्यापक और सर्वत्र समान है मगर प्रभु को प्रगट करने वाला प्रेम है। सनातन विचारधारा तो ऐसा मानती है कि करोड़ों रुपयों से बने महल में रहते हो, लाखों रुपये की कीमती कार में घूमते हो, कीमती वस्त्र और अलंकार पहनते हो, तो भी आप पूरे के पूरे आध्यात्मिक हो सकते हो।
शर्त केवल इतनी ही है कि ये सब चीज आपके लिए नहीं होना चाहिए। आप इसके लिए नहीं हो। इतनी सूक्ष्म भेद रेखा अगर हम समझ लें तो व्यक्ति का सारा जीवन परिवर्तित हो सकता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).