Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जब जीव अपना असली स्वरूप और परमात्मा के साथ का अपना शाश्वत सम्बन्ध भूल जाता है, किसी स्त्री या पुरुष को अपना मान लेता है और ईश्वर का प्रेम एक तरफ छोड़कर दुनिया के स्त्री-पुरुष से प्रेम करने लगता है, तब अतिशय दुःखी हो जाता है. यदि जीव परमात्मा के साथ के प्रेम को देदीप्यमान रक्खे तो ही प्रभु का कृपापात्र बन सकता है.
वाणी से किसी स्त्री या पुरुष को ‘अपना’ कहना गलत नहीं है, लेकिन मन से ‘अपना’ मानकर ममता में फंस जाना गलत है. व्यावहारिक दृष्टि से दुनिया के स्त्री-पुरुष से ममता दिखानी हो तो दिखाई जाय, लेकिन हृदय से तो ईश्वर के साथ ही ममता की जाय. (ममता राखे राम सों समता सब संसार।) जग की सेवा, खोज अपनी, प्रीति प्रभु सों कीजिए। जिंदगी का राज है यह जानकर जी लीजिए।. आप जिसे समझ रहे हैं कि वह मेरा है, वह जीव आपको छोड़कर एक दिन जाने वाला ही है, अथवा एक दिन आपको उसे छोड़कर जाना होगा.
केवल ईश्वर ही जीव को छोड़कर नहीं जाता, क्योंकि जीव ईश्वर का अंश है. चाहने पर भी ईश्वर जीव को छोड़ नहीं सकता. प्रत्येक जीव के साथ परमात्मा अवश्य रहते हैं. जीव ईश्वर को देख नहीं सकता, लेकिन ईश्वर तो सर्वकाल सबको देखता है. ऐसे सर्वकाल देखते रहने वाले और सर्वकाल अपने साथ ही रहने वाले ईश्वर से ही जीव को ममता करनी चाहिये. ईश्वर से ममता करने वाले का जीवन भी मंगलमय हो जाता है और मृत्यु भी दिव्य होती है.
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).