Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)- ब्रजवासी लोग दीपावली के दूसरे दिन भगवान इन्द्र का पूजन करते थे। इन्द्र भगवान को अभिमान हो गया और वे स्वयं को ईश्वर मानने लगे। पूजा में जरा सी कमी रह जाती तो सूखा पड़ जाता अथवा बाढ़ आती, सब कुछ नष्ट हो जाता धा। इन्द्र का मान मर्दन करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की पूजा रोकवा दिया। सम्पूर्ण जगत का जिसमें मंगल था, भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा प्रारम्भ किया।
गोवर्धन पूजा दीपावली के दूसरे दिन कार्तिकमास शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथि पर करने का निर्णय किया। समस्त बृजवासी लोग भगवान श्रीराधाकृष्ण के साथ गोवर्धन पधारे, सबने गिरिराज बाबा का पूजन किया, गिरिराज बाबा को छप्पन भोग लगाया। भगवान श्रीराधाकृष्ण के साथ सबने सातकोस विशाल गिरिराज महराज की परिक्रमा किया। तब से दीपावली के दूसरे दिन घर-घर में गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है।
कार्तिकमास शुक्लपक्ष प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक पन्द्रह दिन हम कभी भी गोवर्धन पूजा का उत्सव कर सकते हैं। पूरे आस्तिक समाज में घर-घर अपने ठाकुर जी को और समस्त मंदिरों में छप्पन भोग लगाया जाता है। इसमें से किसी भी तिथि पर जैसे सुविधा हो छप्पन भोग गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाना चाहिए। लेकिन प्रतिपदा तिथि गोवर्धन पूजा की विशेष तिथि है। अपने घर के गोपाल जी को भी नाना प्रकार के व्यंजन भोग लगाकर घर-घर में गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाना चाहिए। मंदिर में तो विशेष रूप से मनाना चाहिए।
गोवर्धन पूजा के समय भगवान कृष्ण की आयु सात वर्ष थी। गिरिराज बाबा की परिक्रमा भी सातकोस की है। भगवान श्रीकृष्ण बाएं हाथ के छोटी उंगलीपर सात दिन, सात रात, गिरिराज जी को धारण करके रखे। अगर हम अपने घर अथवा मंदिर में गोवर्धन पूजा उत्सव मनाते हैं, तो भगवान सप्ताह के सातों दिन हमारी-आपकी रक्षा करते हैं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).