पुण्य के बदले सुख प्राप्त करने की भूमि है स्वर्ग: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, (मृत्युलोक) इस धराधाम को कर्मभूमि बताया गया है। इसके अलावा स्वर्ग हो या नर्क उसे भोगभूमि बताया गया है। कहीं जीव अपने पुण्य के फलस्वरुप सुख प्राप्त करता है, उसे स्वर्ग कहते हैं और कहीं जीव अपने पापों के फलस्वरुप दंडित किया जाता है, उसे यमराज की शयमनीपुरी अथवा नर्कलोक कहते हैं। स्वर्ग पुण्य के बदले सुख प्राप्त करने की भूमि है। पृथ्वी कर्मभूमि है।
स्वर्ग के देवताओं का जीवन मुख्य रूप से नाना प्रकार के सुखों से युक्त है, अतः वहां नया पुण्य पैदा नहीं किया जा सकता है। जबकि पृथ्वी पर सदाचार पूर्वक जीवन व्यतीत करके पुण्य कमाया जा सकता है। स्वर्ग सुख भोगने के लिए अच्छा स्थान हो सकता है, किंतु वह हमारे पुण्य की जमा पूंजी समाप्त करने वाला है, अतः दुखदायी है। जबकि पृथ्वी पर चाहे अपार वेदना सहनी पड़ती है, फिर भी यहां नया सत्कर्म करने की अनुकूलता होने के कारण, स्वर्ग के देवता भी भारत भूमि में जन्म लेकर पुण्य कमाने की इच्छा रखते हैं।
इसका कारण यह है कि स्वर्ग के देवता भले ही सुख पाते हों पर शांति नहीं, शांति तो सत्कर्म एवं ईश्वर की आराधना से ही मिलती है।मृत्युलोक के अलावा अन्य लोकों में ईश्वर की आराधना एवं सत्कर्म से प्राप्त पुण्य की आवक का कोई  साधन नहीं है, केवल संचित पुण्यों को खर्च कर डालने की ही बात है। थोड़ा धन यदि संसार के सुखों में खर्च हो और बाकी धन प्रभु सेवा में काम आये तो लक्ष्मी जी प्रसन्न रहेंगीं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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