UP के इस जगह से हुई थी होली की शुरुआत, त्रेतायुग से जुड़ा है इतिहास; श्रीमद भागवत में भी है वर्णन

Shubham Tiwari
Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Holi in Erach, विवेक राजौरिया/झांसी: होली का त्यौहार आते ही पूरा देश रंग और गुलाल की मस्ती में सराबोर हो जाता है, लेकिन शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि पूरी दुनिया को रंगीन करने वाले इस पर्व की शुरुआत यूपी के झांसी जिले से हुई थी. बता दें कि बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जिले में स्थित एरच कस्बा त्रेतायुग में गवाह रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहीं वो जगह जहां हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रहलाह को गोद में लेकर जलाने बैठी थी और यहां से होलिका दहन और रंगोत्सव के पर्व होली की शुरुआत हुई थी. आइए जानते हैं क्या है ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यता?

जानिए क्या कहते हैं पुराण

शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक, वर्तमान में झासी जिले का एरच कस्बा त्रेतायुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. एरिकच्छ दैत्याराज हिरणाकश्यप की राजधानी थी. हिरणाकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि वह न तो दिन में मरेगा और न ही रात में तथा न तो उसे इंसान मार पायेगा और न ही जानवर. इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरणाकश्यप निरंकुश हो गया, लेकिन इस राक्षसराज के घर जन्म हुआ भक्त प्रहलाद का. भक्त प्रहलाद की भगवद भक्ति से परेशान हिरणाकश्यप ने उसे मरवाने के कई प्रयास किए फिर भी प्रहलाद बच गया, आखिरकार हिरणाकश्यप ने प्रहलाद को डिकोली पर्वत से नीचे फिकवा दिया. डिकोली पर्वत और जिस स्थान पर प्रहलाद गिरें वह आज भी मौजूद है.

होलिका ने किया जलाने का प्रयास

जब डिकोली पर्वत से नीचे फिकवाने के बाद भी प्रहलाद नहीं मरें, तो आखिरकार हिरणाकश्यप की बहिन होलिका ने प्रहलाद को मारने की ठानी. होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वह आग के बीच बैठ सकती थी, जिसको ओढ़कर आग का कोई असर नहीं होता था. होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान की माया का असर यह हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद पर आ गई, इस तरह प्रहलाद फिर बच गया और होलिका जल गई.

हिरणाकश्यप के वध के बाद हुई होली की शुरुआत

जब इससे भी भक्त प्रहलाद नहीं मरे तो हिरणाकश्यप ने उन्हें खंभे में बांध दिया और मारने लगा. जिसके तुंरत बाद विष्णु भगवान ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गौधुली बेला में अपने नाखूनों से मंदिर की दहलीज पर हिरणाकश्यप का वध कर दिया. हिरणाकश्यप के वध के बाद एरिकच्छ की जनता ने एक दूसरे को खुशी में गुलाल डालना शुरू कर दिया और यहीं से होली की शुरुआत हो गई.

श्रीमद भागवत के दूसरे सप्तम स्कन्ध में है वर्णन

ज्ञात हो कि होली के इस महापर्व पर कई कथानकों के सैकड़ों प्रमाण हैं, जिसके बुंदेलखंड के इस एरच कस्बे में मौजूद है, डिकोली पर्वत तो प्रहलाद को फेंके जाने की कथा बयां करता ही है, बेतवा नदी का शीतल जल भी प्रहलाद दुय को हर पल स्पर्श कर खुद को धन्य समझता है, होलिका के दहन का स्थान हिरणाकश्यप के किले के खंडहर और कस्बे में सैकड़ों साल पुराना नरसिंह मंदिर सभी घटनाओं की पुष्टि करते हैं. इसके साथ ही यहा खुदाई में मिली प्रहलाद को गोद में बिठाए होलिका की अदभुत मूर्ति हजारों साल पुरानी यह मूर्ति शायद इस कस्बे की गाथा बयां करने के लिए ही निकली है, कथानकों के मुताबिक हिरणाकश्यप तैंतालीस लाख वर्ष पूर्व एरिकच्छ में राज्य करता था. बुंदेलखंड का सबसे पुराना नगर एरच ही है, श्रीमद भागवत के दूसरे सप्तम स्कन्ध के दूसरे से नौवें और झांसी के गजेटियर में पेज संख्या तीन सौ उन्तालीस में भी होली की शुरुआत से जुड़े प्रमाण दिए गए हैं.

होली जलने के तीसरे दिन खेली जाती है होली

हैरानी की बात यह है कि बुंदेलखंड के जिस जगह से होली की शुरुआत हुई, वहां होलिका दहन के अगले दिन होली नहीं खेली जाती है. बल्कि होलिका दहन के तीसरे दिन यानी दोज पर होली खेली जाती है, क्योंकि हिरणाकश्यप के वध के बाद अगले दिन एरिकच्छ के लोगों ने राजा की मृत्यु का शोक मनाया और एक दूसरे पर होली की राख डालने लगे. इस दौरान भगवान विष्णु ने दैत्यों और देवताओं के बीच सुलह कराई. समझौते के बाद सभी लोग एक दूसरे पर रंग-गुलाल डालने लगे, इसीलिए बुंदेलखंड में होली के अगले दिन कीचड की होली खेली जाती है और रंगों की होली दोज के दिन खेली जाती है.

विशेष कार्यक्रम

एरच कस्बे में पांच दिवसीय होली महोत्सव 21 से 25 मार्च तक मनाया जाएगा. शासन द्वारा होली महोत्सव के लिए दस लाख की धनराशि मुहैया कराई जाती है, जिसमें पर्यटन विभाग के निर्देशन और भक्त प्रहलाद जन कल्याण संस्थान के संयोजन में आयोजन किया जाता है. 21 मार्च को भक्त प्रहलाद की भव्य शोभायात्रा के साथ महोत्सव का आगाज होगा. 22 को बेबी इमरान की टीम द्वारा बुंदेली राई नृत्य एवं रात्रि कवि सम्मेलन होगा, 23 को रंगोली प्रतियोगिता, रात्रि में सितार वादक सरजू शरण पाठक द्वारा शास्त्रीय संगीत एवं भजन की प्रस्तुति होगी, 24 को लोकगीत एवं संजो बघेल द्वारा आल्हा भजन गायन, 25 को अखिलेश अलख एवं राधिका प्रजापति द्वारा लोकगीत एवं राई नृत्य के साथ रात्रि में भक्त प्रहलाद नाट्य मंचन की प्रस्तुति होगी.

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