Holika Dahan 2025: होलिका दहन आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि और महत्व

Divya Rai
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Content Writer The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Holika Dahan 2025 Shubh Muhurat: होली का त्योहार रंगों, उमंग और नई ऊर्जा का पर्व है. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. होली से एक दिन पहले यानी फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. पंचांग के अनुसार, आज फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि है. ऐसे में आज होलिका दहन किया जाएगा और 14 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा. होलिका दहन से नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि.

होलिका दहन शुभ मुहूर्त

पंचांग के मुताबिक, इस साल होलिका दहन 13 मार्च को यानी आज है. होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त गुरुवार रात 11:26 बजे से लेकर रात 12:30 बजे तक का होगा. पूर्णिमा तिथि सुबह 10 बजकर 35 मिनट से लेकर कल यानी 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक है. वहीं, छोटी होली पर दिनभर भद्रा का साया रहेगा. ऐसे में आज रात 11 बजकर 26 मिनट के बाद होलिका दहन किया जा सकता है.

क्या है Holika दहन की विधि?

आमतौर पर होलिका दहन को छोटी होली भी कहा जाता है. इस दिन सूर्यास्त के बाद ही होलिका दहन की प्रक्रिया शुरू होती हैं. होलिका दहन के दिन रोली, अक्षत, फूल, कच्चा दूध, सूत का धागा, हल्की के टुकड़े, मूंग दाल, बताशा, नारियल और गुलाल इत्यादि से पूजा की जाती है. इसके बाद होलिका जलाने के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करने के बाद उसमें आग लगाया जाता है. इसके बाद उसमें पांच प्रकार का अनाज डाला जाता है. लोग 5 बार होलिका की परिक्रमा करते हैं और अपनी भलाई और खुशी के लिए प्रार्थना करते हैं.

होलिका की आग में क्या-क्या डालें?

  • होलिका दहन की आग में काला तिल डाला जाता है. मान्यता है, ऐसा करने से सेहत अच्छी रहती है.
  • इलायची व कपूर डालने से बीमारियों का नाश होता है.
  • मान्यता है, होलिका की अग्नि में चंदन की लकड़ी डालने से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है.
  • होलिका की अग्नि में पीली सरसों डालने से रोजगार में उन्नति होती है.
  • होलिका की अग्नि में हवन सामग्री डालने से शादीशुदा जिंदगी खुशहाल रहती है.
  • होलिका की अग्नि में काली सरसों को डालने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है.

होलिका दहन का पौराणिक महत्व

फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है. कथा के मुतबिक, असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी. बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती. भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गई. लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई. अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ. तब से होली के पहले दिन होलिका दहन किया जाता है.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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