Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीकृष्ण की कथा में श्रीशुकदेवजी जैसे महायोगी और राजा परीक्षित जैसे महाराजा को एक समान आनंद मिलता रहा। इसका कारण यह है कि- श्रीकृष्ण महायोगी भी हैं और महाराजा भी हैं।
सामान्यतः योग और राज्य पद साथ-साथ चल नहीं सकता। यह दोनों कर पाना भगवान के भक्त महापुरुषों या भगवान के लिए ही संभव है। योगी यदि राज्य का कार्य भार देखेगा तो उसकी साधना में कमी आ जाएगी और यदि राजा योगाभ्यास करने में लगेगा तो उसके लिए कठिन है परंतु श्रीकृष्ण के चरित्र में योग और राज्य के विशाल कार्यभार का सामन्वय है।
सोलह हजार एक सौ आठ महारानियों के बीच में बैठने वाले श्रीकृष्ण बहुत बड़े महाराजा भी हैं और बड़े-बड़े योगियों के बीच में बैठने वाले श्री कृष्ण महायोगी भी हैं। सोलह हजार एक सौ आठ देवियों के स्वामी होते हुए भी उनके चित्त में संसार का स्पर्श भी नहीं है अतः वे परब्रह्म परमात्मा हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण संसारियों को भी अच्छे लगते हैं और संन्यासियों को ही प्यारे लगते हैं। दुरुपयोग होने पर पैसा जहर है। सदुपयोग उपयोग होने पर पैसा अमृत है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).