मनुष्य का शक्ति, सद्गुणों और धर्मनिष्ठा से संरक्षित होना है आवश्यक: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सद्गुणों की कथा- श्रीरामकथा सर्वप्रथम, एक बात स्मरण में रखें कि संसार में गुणी लोगों की निरंतर खोज होती है। जिनका जीवन गुणों से युक्त है, जिनके जीवन में गुणों की अधिकता है, ऐसे ही गुणी लोगों की खोज होती है। जीवन गुणवान हो। प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की यह विशेषता है। उनका दिव्य जीवन असंख्य गुणों से भरा है। प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के व्यक्तित्व में जिन विविध गुणों के दर्शन होते हैं, उनकी लम्बी सूची श्रीवाल्मीकि रामायण में मिलती है।
बालकाण्ड का प्रथम सर्ग और अयोध्याकाण्ड का प्रथम सर्ग- इन दोनों ही स्थान पर प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का वर्णन है। संसार में मनुष्य तो अनेक हैं, जनसंख्या भी बहुत अधिक है। कहीं भी जायें तो अच्छा कार्य करने वाले मनुष्य मिलते ही नहीं। एक ओर ऐसी चर्चा है कि जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, कम करें और दूसरी ओर जाने पर यह शिकायत सुनाई देती है कि अच्छे लोग मिलते ही नहीं। इसका क्या अर्थ है?
एक बार एक पानी के जहाज में पीने का पानी समाप्त हो गया। पानी नहीं है— पानी नहीं है, ऐसी चर्चा शुरू हो गयी। सबको चिन्ता होने लगी। जहाज के कप्तान का पुत्र अपने पिता से प्रश्न करता है- ‘ पिताजी, चारों ओर तो इतना पानी दिखाई दे रहा है, तब भी जहाज के यात्री ऐसा क्यों कह रहे हैं कि पानी नहीं है?’ कप्तान ने उसे समझाया कि पानी तो बहुत है किन्तु वह पीने योग्य नहीं है। समुद्र में अथाह जल होता है किन्तु जहाज के लोगों को प्यास लगने पर इतना अथाह जल भी उनके किसी उपयोग का नहीं है। उसी प्रकार संसार में मनुष्य तो अनेक हैं किन्तु उपयोगी पड़ने वाले मनुष्य कम है। इस संसार में हमेशा गुणवानों की खोज होती है।
इसी कारण महर्षि श्रीवाल्मीकिजी ने श्री नारद जी से प्रश्न किया कि आपकी दृष्टि में इस संसार में सर्वाधिक गुणवान कौन है? यहां केवल गुणवान ही नहीं अपितु वीर्यवान मनुष्य अभिप्रेत है। कोई सात्विक मनुष्य, सज्जनता का अत्यंत मूर्तिमन्त पुतला हो किन्तु उसने कभी किसी गलत बात का प्रतिकार भी नहीं किया हो, उसमें किसी गलत व्यक्ति का प्रतिकार करने, दुष्टों से संघर्ष करने योग्य बल ही नहीं हो, तो उसके गुणी होंने का क्या अर्थ है? जो व्यक्ति अत्यन्त पराक्रमी और गुणी है, मर्यादा से युक्त है, धर्मज्ञ और कृतज्ञ है, ऐसा ही मनुष्य संसार को चाहिए। मनुष्य के पास केवल शक्ति होना ही पर्याप्त नहीं है अपितु  वह शक्ति सद्गुणों और धर्मनिष्ठा से संरक्षित होना भी आवश्यक है।
आज के समय में जब मानवता का हराश हो रहा है तो रामायण पढ़ना, सुनना, चिंतन और मनन करना अत्यन्त उपयोगी है। रामायण पढ़ने सुनने से जीवन में मानवता का सृजन होता है और हम श्रेष्ठ मानव हैं तो हमारी मानवता की रक्षा भी होती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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