Kedarnath Dham: पांडवों की वजह से शिवजी ने धारण किया था नंदी का रूप, जानिए केदारनाथ धाम से जुड़ी रोचक कथा

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Kedarnath Dham Jyotirlinga, History and Mystery:  आज, 10 मई को अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए बाबा केदारनाथ धाम के कपाट खोले गए. केदारनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित है. इस धाम की गणना 12 ज्‍योतिर्लिंगों में की जाती है. हिमालय की गोद में स्थित बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं.

इसके साथ ही इस स्थान की अलौकिकता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. ऐसी मान्‍यता है कि यहां पांडवों को भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद मिला था. इसके बाद उन्‍हें भ्रातृहत्‍या के पाप से मुक्ति मिली थी. आइए जानते हैं केदारनाथ मंदिर से जुड़ी रोचक कथा और रहस्‍यों के बारे में…

केदारनाथ धाम से जुड़ी रोचक कथा

मान्‍यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर अपने भाइयों और सगे-सम्बन्धियों की हत्या का दोष लग गया था. उस समय श्रीकृष्ण ने उन्हें शिवजी से क्षमा मांगने का सुझाव दिया था. लेकिन भोलेनाथ पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पांचो की नजर में न आने के लिए बैल यानी नंदी का रूप लेकर पहाड़ों में मौजूद गाय बैलों के बीच में छिप गए.

जब पांडवों को संदेह हुआ तो गदाधारी भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए. पैर के नीचे से अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, लेकिन भगवान शिव रूपी बैल पैरों के नीचे से नहीं निकले. इस पर भीम बैल पर झपटे तो बैल भूमि में अंतर्ध्‍यान अंतर्ध्‍यान होने लगा. तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का हिस्‍सा पकड़ लिया. तब भगवान भोलेनाथ पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उन्हें पाप मुक्त कर दिया. तभी से भोलेनाथ बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में विराजमान हैं.

मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी और रहस्य

भव्‍य केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के घाट पर मौजूद है. मंदिर के गर्भगृह में हर समय अंधकार रहता है. दीपक के जरिए उनके दर्शन किए जाते हैं. यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जिस वजह से इस स्थान का महत्व और भी ज्‍यादा है.

शास्‍त्रों के अनुसार, केदारनाथ धाम में सबसे पहले मन्दिर का निर्माण पांचों पांडवों ने किया था. लेकिन वह समय के साथ विलुप्त हो गई. फिर आदिगुरु शंकराचार्य जी ने इस मंदिर को फिर से बनवाया. खास बात यह है कि आदिशंकराचार्य की समाधि भी इस मन्दिर के पीछे ही है.

इस आलौकिक मन्दिर के कपाट मई माह में 6 महीने के लिए खोले जाते हैं. कड़ाके की सर्दियों से पहले यानि नवम्बर में 6 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां की ठंड को सहन करना साधारण व्यक्ति के लिए असंभव है.

इस धाम के सन्दर्भ में पुराणों में यह भविष्यवाणी भी की गई थी कि एक समय ऐसा आएगा जब केदारनाथ धाम का समस्‍त क्षेत्र और तीर्थ स्थल लुप्त हो जाएंगे. यह तब होगा जब दिन नर और नारायण पर्वत एक दूसरे से मिलेंगे, तब केदारनाथ धाम का मार्ग बंद हो जाएगा. इस घटना के कई वर्षों बाद ‘भविश्यबद्री’ नाम के तीर्थ का उत्थान होगा.

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