Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जीवात्मा को जीवन यात्रा में एक बात सर्वदा स्मरण रखनी चाहिए कि मृत्यु के समय उसे किसी से नहीं मिलना है, सिर्फ परमात्मा से ही मिलना है। जीवन काल में जो इस भाव से रहता है, उसकी मृत्यु सुधर जाती है और जो ईश्वर से विमुख होकर संसार के व्यवहार में लीन रहता है, उसकी मृत्यु बिगड़ जाती है।
जिसका तन मंदिर में हो, लेकिन मन ईश्वर के चरणों में नहीं हो, उसकी मृत्यु मंदिर में हो जाय तो भी यह किस काम की? ऐसे ईश्वर-विमुख लोगों की मृत्यु मंदिर में भी हो जाय, फिर भी उनकी मृत्यु बिगड़ जाती है। यदि देह अस्पताल में हो और मन ईश्वर-स्मरण करता हो और अस्पताल में मृत्यु हो जाय तो भी मृत्यु मंगलमय हो जाती है। इसलिए हर समय, हर हालत में, हर जगह मन को प्रभु-चरण स्मरण में ही लीन रहे – यह ध्यान रहे।
मृत्यु बिगाड़ने में बैर और वासना का भी बड़ा हिस्सा रहता है, दोनों मानव के मन को ईश्वर-विमुख करते हैं। मृत्यु के अमूल्य समय पर तो मन प्रभु के चरण-स्मरण में ही लीन होना चाहिए, किंतु ऐसा करने में वैर और वासना ही अवरोध उत्पन्न करते हैं और जीवात्मा के प्रभु मिलन के समय मृत्यु बिगड़ जाती है। इसीलिए मृत्यु से पहले वैर और वासना का त्याग कर दो।
यदि मनुष्य मन से संकल्प करे कि किसी से कुछ विरोध नहीं है। मेरा कोई शत्रु नहीं है, मेरे दुःख का कारण दूसरा कोई नहीं, केवल मेरे पाप ही हैं, तो मन में से वैर भाव नष्ट हो जाते हैं। किसी व्यक्ति का मन वासना के स्पर्श से अलग हो जाय, यह भी बहुत आवश्यक है, क्योंकि वासना भी जीव को बहुत दुःखी करती है और मृत्यु को बिगड़ती है। मानव के मन को वासना के स्पर्श से छुड़ाना हो तो प्रभु मिलन की लालसा को साथ जोड़ना चाहिए।
मानव का मन यदि ऐसी अलौकिक वासना में जुड़ जाय तो लौकिक वासना के स्पर्श से वह अपने आप मुक्त हो जाता है और उसकी मृत्यु अनायास ही मंगलमय हो जाती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).