सबसे पहले लव-कुश ने किया श्रीवाल्मीकि रामायण की कथा का गान: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कृत्स्नं रामायणं काव्यं सीतायाः चरितं महत्। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने आदिकाव्य श्रीवाल्मीकि रामायण की रचना भगवती सीता के मंगलमय चरित का वर्णन करने के लिए लिखा। श्रीवाल्मीकि रामायण की कथा का गान सबसे पहले बाल्मीकि आश्रम पर लव-कुश ने किया।
उन दोनों मुनिवेशधारी सुकुमारों ने तन्मयता से दिव्य श्रीरामकथा का गाना आरम्भ किया। उस गायन का श्रोताओं पर प्रथम परिणाम क्या हुआ? महर्षि वाल्मीकि वर्णन करते हैं- तत् श्रुत्वा मुनयः सर्वे बाष्पपर्याकुलेक्षणाः। समस्त श्रोताओं के नेत्रों में जल भर आया। रामायण के प्रत्येक शब्द से और उन शब्दों में लव-कुश द्वारा फूंके गये प्राणों से उनका हृदय द्रवित हो उठा और उन सर्वसंगपरित्यागी निर्लिप्त मुनियों के नेत्रों से अश्रुधारा फूट पड़ी।
वे तन्मय होकर झूमने लगे। यदि इन मुनीश्वरों ने किसी से कहा होता कि इस प्रकार का कोई काव्य हो सकता है, तो संभवतः उन्हें विश्वास नहीं हुआ होता। वे समस्त ऋषिगण कथा श्रवण में निमग्न हैं और उनके मुख से बारम्बार साधु-साधु, वाह-वाह, शाबास-शाबास इस प्रकार के उद्गार निकलने लगे। कुश-लव तन्मयता से गा रहे हैं और सारे तपस्वी मंत्रमुग्ध होकर श्रवण कर रहे हैं। महर्षि वाल्मीकि केवल श्रोताओं पर क्या परिणाम हो रहा है, इसका अनुमान लगा रहे हैं।
महर्षि वाल्मीकि ने देखा कि कोई भी श्रोता अपने उद्गार रोक नहीं पा रहा है। कोई भी अपने अश्रुओं पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा है। धर्मशास्त्रों में जीव की तीन कोटि बतायी गयी हैं। विषय जीव, साधक जीव और सिद्ध कोटि का जीव। यह तीन जीव की कोटि का वर्णन प्रायः सभी धर्मशास्त्रों में किया गया है। रामायण में सुग्रीव को विषय जीव की कोटि में बताया गया, श्री विभीषण जी महाराज को साधक कोटि के जीव के रूप में प्रस्तुत किया गया और श्री भरत लाल जी को सिद्ध कोटि का जीव बताया गया।
साधन सिद्ध राम पद नेहू। मोहि लखिपरत भरत मत एहू।। विषई साधक सिद्ध सयाने। त्रिविध जीव जग वेद बखाने।। भगवान की कथा ही एक ऐसा साधन है, जिससे तीनों कोटि के जीवों का मंगल होता है। कथा में संकीर्तन आदि रस होने से विषयी जीव भी कथा में आनंद प्राप्त करता है और भगवान की कथा श्रवण करते-करते वह साधक कोटि में चला जाता है। साधक कोटि का जीव कथा का आश्रय ले करके सिद्ध कोटि में चला जाता है और सिद्ध कोटि के शुक-सनकादि जैसे महापुरुषों का तो जीवन ही भगवान की कथा है।
ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहु कालीना।। रूप धरे जनु चारिउ वेदा। समदर्शी मुनि विगत विभेदा।। आशा वसन व्यसन यह तिनहीं। रघुपति चरित होई तहँ सुनहीं।। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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