Mahashivratri 2024: हिन्दू धर्म में हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यह दिन शिवभक्तों के लिए बेहद खास होता है. इस साल यह त्योहार 8 मार्च दिन शुक्रवार को पड़ रहा है. इस दिन को भगवान शिव से जुड़े व्रतों में सबसे अहम माना जाता है. पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन लोग विधि-विधान से पूजा अर्चना और व्रत करते हैं, भक्तिभाव से लोग शिवलिंग का अभिषेक करते हैं.
माना जाता है कि संसार में सभी रूपों में भगवान शिव विद्यमान हैं. शिव आदि भी हैं और अनंत भी. इनका स्वरूप अन्य देवी-देवताओं से काफी अलग है. महादेव फूल मालाओं और आभूषणों के बजाय भस्म का श्रृंगार पसंद करते है. वे मस्तक पर चंद्रमा तो गले में सर्प माला धारण किए रहते हैं. उनकी जटा में मां गंगा विराजित हैं. भगवान शिव के अस्त्र, शस्त्र और वस्त्र बेहद अद्भुत हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इन अस्त्र-शस्त्र से कुछ न कुछ विशेष अर्थ जुड़ा हुआ है. अगर नहीं तो आज के लेख हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगें. तो चलिए जानते हैं.
भगवान भोलेनाथ के 10 प्रतीक और उनका अर्थ
सिर पर चंद्रमा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. शिवजी के सिर पर अर्धचंद्रमा आभूषण की तरह सुशोभित है. इसके चलते शास्त्रों में भगवान शिव को सोम और चंद्रशेखर भी कहा गया है. इनके सिर पर विराजमान अर्धचंद्रमा को मन की स्थिरता और आदि से अनंत का प्रतीक माना गया है.
गले में सर्प माला
आपने भगवान शिव की तस्वीर देखी होगी, वे फूल, आभूषण के बजाय सर्प की माला पहने रहते हैं. उनके गले में लिपटा सांप वासुकी नाग है. वासुकी नाग वर्तमान, भूत और भविष्य का सूचक माना जाता है. सांप तमोगुणी प्रवृतियों का प्रतीक है और शिवजी के गले में होने के वजह से यह दिखाता है कि तमोगुणी प्रवृतियां शिव के अधीन या वश में हैं.
तीसरी आंख
महादेव की तीन आंख हैं. मान्यता है कि उनकी तीसरी आंख क्रोध के समय खुलती है और जब तीसरी आंख खुलती है तो विनाश होता है. वहीं, सामान्य परिस्थितियों में भगवान शिव की तीसरी आंख विवेक के रूप में जागृत रहती है. कहा जाता है कि शिवजी की तीसरी आंख ज्ञान और सर्व-भूत का प्रतीक है. उनकी तीसरी आंख ऐसी दृष्टि का बोध कराती है, जो कि 5 इंद्रियों से परे है. इसलिए भगवान शिव को त्र्यम्बक कहा जाता है.
त्रिशूल
शिवजी के हाथ में अस्त्र के रूप में हमेशा त्रिशूल रहता है. इसे लेकर कहते हैं कि त्रिशूल दैविक, दैहिक और भौतिक तापों का नाश करने का मारक शस्त्र है. उनके त्रिशूल में राजसी, सात्विक और तामसी तीनों गुण निहित हैं. साथ ही त्रिशूल ज्ञान, इच्छा और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है.
हाथ में डमरू
कहा जाता है कि डमरू के बजते ही शिव का तांडव शुरू हो जाता है और उनके तांडव से प्रलय होने लगाता है. पौराणिक मान्यता है कि भोलेनाथ के डमरू की ब्रह्मांडीय ध्वनि से नाद उत्पन्न होती है, जो ब्रह्मा का रूप है. डमरू को संसार का पहला वाद्य यंत्र भी कहते है. उनके हाथों में डमरू सृष्टि के आरंभ और ब्रह्म नाद का सूचक है.
रुद्राक्ष
मान्यता है कि भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब शिवजी ने गहरे ध्यान के बाद अपनी आंखें खोली तो उनकी आंखों से आंसू की बूंद पृथ्वी पर गिर गई, जिससे रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई. शिवजी के गले और हाथों में रुद्राक्ष रहता है, जो शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है.
गंगा
जटाधारी शिव की जटा में गंगा समाहित है. पौराणिक कथा के मुताबिक, गंगा का स्त्रोत शिव है. उनकी जटाओं से ही गंगा माता का स्वर्ग से धरती पर आगमन हुआ था. शिव द्वारा जटा में गंगा आध्यात्म और पवित्रता को दिखाता है.
बाघंबर वस्त्र
बाघ शक्ति, ऊर्जा और सत्ता का प्रतीक है. शिवशंभू वस्त्र के रूप में बाघ की खाल धारण किए रहते हैं, जो दर्शाता है कि वे सभी शक्तियों से ऊपर हैं. साथ ही यह निडरता और दृढ़ता का भी प्रतीक है.
नंदी
आपने देखा होगा, सभी शिवमंदिर के बाहर नंदी जरूर रहते हैं. नंदी वृषभ यानी बैल भगवान शिवजी के वाहन माने जाते हैं. धर्म रूपी नंदी के चारों पैर चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को दिखाते हैं.
भस्म
शिवशंकर अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो इस बात का संदेश देता है कि संसार नश्वर है और हर प्राणी को एक दिन खाक में मिलना है. भस्म विध्वंस का प्रतीक माना जाता है, जिसके बाद भगवान ब्रह्मा पुनर्निमाण करते हैं.
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