Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) सनातन धर्म का एक प्रमुख त्योहार माना जाता है. इस दिन गंगा स्नान के साथ-साथ दान का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव इस दिन मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस त्योहार को मकर संक्रांति कहा जाने लगा. इस दिन लोग नए कपड़े, पूजा-पाठ, दही-चूड़ा, मिठाईयां और पतंग उड़ाकर त्योहार का जश्न मनाते हैं. दही-चूड़ा मकर संक्रांति के पर्व का अहम हिस्सा होता है. ये न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसका सेवन करने के पीछे शुभ और ऐतिहासिक कारण भी होते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर खिचड़ी पर दही-चूड़ा खाने की परंपरा क्यों है…
खिचड़ी पर क्यों खाया जाता है दही-चूड़ा
पोषण का बैलेंस कॉम्बिनेशन
चूड़ा, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा सोर्स माना जाता है. वहीं, दही में कैल्शियम, प्रोटीन और अच्छे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं. इन दोनों का मिश्रण पोषण का बैलेंस कॉम्बिनेशन है. जिससे पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है. मकर संक्रांति के पर्व को ठंड के अंत और फसल कटाई की खुशियों का प्रतीक कहा जाता है. इस मौसम में हमारे शरीर को पोषक तत्वों की जरूरत होती है. ऐसे में दही-चूड़ा का कॉम्बिनेशन इसे बखूबी पूरा करता है.
समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक
हिंदू धर्म में दही-चूड़ा का सफेद रंग पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक होता है. चूड़ा स्वाद को समेटे होता है और उसका कुरकुरापन व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव को दर्शाता है. वहीं, दही की ठंडक, मिठास और शुद्धता जीवन में खुशियों का प्रतीक है. ये नए साल में आने वाले शुभ संकेत, खुशहाली, समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करता है.
विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से बनाता है
मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा का सेवन करना अनिवार्य है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में इसे बनाने की विधी अलग है. उत्तर प्रदेश में दही-चूड़े में गुड़ और मेवा मिलाकर खाया जाता है. बिहार में नारियल और मूंगफली के साथ इसका सेवन किया जाता है. वहीं, दक्षिण भारत में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में मनाते हैं. जिसमें दही-चूड़े में सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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