Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, “मैं बंधा हुआ हूं ” ऐसा सोचना ही सबसे बड़ा अज्ञान है। इसलिए ‘ मैं मुक्त हूं ‘ ये ज्ञान है। उसकी अनुभूति का नाम ही मुक्ति है। मुक्ति मांगने की, देने की, लेने की वस्तु नहीं है।स्वयं अपने आपको अर्पित कर देना ही आत्म निवेदन है। उसको अपना स्वरूप मान लेना आत्म निवेदन है। अपना अहंकार निवृत्त करके प्रभु चरणों में अर्पित होना ही आत्मनिवेदन है।
दुनियां में जितने लोग हैं हम सबको स्नेह जरूर करते हैं। लेकिन कोई न कोई हेतु , कोई न कोई सूक्ष्म स्वार्थ या कारण जरूर होता है। उसके बिना मानव संसार में प्रेम किसी को कर ही नहीं सकता। केवल संत महापुरुष एवं परमात्मा ही ऐसे हैं जो जीव को बिना हेतु स्नेह करते हैं। संतन मिलि निर्णय कियो मथि श्रुति पुराण इतिहास। भजिवे को दो ही सुधर कै हरि कै हरिदास।।
सोचता हूं न जाऊंगा कूचे में कभी उनके। लेकिन होता है कि हर रोज कोई काम निकल आता है।। जो सद्भाव को पसंद करता है उसके साथ सफलता और समृद्धि अपने आपही आ जाती है। जहां सद्भाव है वहां सफलता और समृद्धि भी है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
ये भी पढ़ें :- पदभार ग्रहण करने से पहले इजरायली बंधकों को रिहा नहीं किया तो…. ट्रंप ने हमास को दी खुली धमकी