Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रभु प्रेम उन्नत करता है, और काम अधःपतन करता है। प्रेम से किया हुआ प्रभु-स्मरण परमात्मा के पास पहुंचता है। मन को प्रभु प्रेम में डुबो दो, मन भर जायेगा, जीवन तर जायेगा। सामान्य जीवों के लिए भक्ति मार्ग श्रेय और सरल है। जिसका हृदय विशाल है और आंखें स्नेहयुक्त हैं, उनके लिए प्रभु अत्यन्त उदार हैं।
प्रभु सामने आने वाले जीव को प्रेम से गले लगाते हैं। मनुष्य पैसे के लिए जितना पागल बनता है, उतना प्रभु के लिए नहीं, इसीलिए भटकता है। भक्ति के बिना सब व्यर्थ है। आत्मदृष्टि से प्रेम उत्पन्न होता है और शरीर दृष्टि से मोह उत्पन्न होता है। प्रभु-प्रेम में प्रमाद न करें। सबको प्रभु का रूप मानकर उनके साथ विवेक एवं सद्भाव से व्यवहार करें।
प्रत्येक में प्रभु को देखने वाला हमेशा उनके सानिध्य का अनुभव करता है। प्रभु का वियोग ही सबसे बड़ा रोग है। प्रत्येक में प्रभु-दर्शन करना ही उसकी दवा है। प्रभु एवं परोपकार के लिए जो पीड़ा सहता है, उसे रोना नहीं पड़ता। जो प्रभु एवं परोपकार के लिए होता है, उसे कभी रोना नहीं पड़ता। निराधार के सहारे बनो, सदाचार के प्यारे बनो। दूसरे के सुख में सुखी बनो। आपके आंगन में आने वाला भिखारी भी प्रभु का स्वरूप है, उसे जूंठा अन्न नहीं देना चाहिए।
ग्राहक में प्रभु बैठे हैं, यह समझकर व्यापार करो। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).