Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मंदिर में प्रभु के पास जाओ, तब प्रभु को भावपूर्ण आंखों से देखो और विचारो की मेरा प्रभु मुझे देख रहा है, अतः प्रभु के पास ऐसा बनकर जाना चाहिये कि मुझे देखते ही प्रभु की आंख प्रेम से हर्षित हो जाएँ । इस भावना से मंदिर में दर्शन करने जाओगे तो आपको अनोखी शांति मिलेगी। जिसका हृदय भावना से भरा हुआ हो, वही प्रभु के पास द्रवित होता है और उसी को शांति तथा आनंद प्राप्त होते हैं।
मंदिर की मूर्ति में जिस भावना से भगवान के दर्शन हों,उसी उच्च भावना से प्रत्येक प्राणी में दर्शन करने की भावना पैदा होनी चाहिए। ईश्वर क्या किसी मंदिर में और एक ही सिंहासन पर बैठने वाला तत्व है ? वह तो प्राणिमात्र में रहने वाला ज्योतिर्मय चैतन्य तत्व है। वह हमारे अंदर भी बैठा हुआ है। यदि न बैठा हुआ होता तो हममें चेतना कहां से होती ?
अर्थात् प्रत्येक में बैठा हुआ परमात्मा ही प्रत्येक के मन, बुद्धि और इंद्रियों को शक्ति प्रदान करता है। उस परमात्मा को ही नमन करें, उसका ही स्मरण करें और अहर्निश उसी का दर्शन करें। जीव माया का दास बनकर घूमता है, इसीलिए दुःखी होता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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