Reporter
The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, शान्ति- शान्ति ज्ञानी या विद्वान बनने से नहीं, भक्ति से सरोवोर होने से मिलती है। सत्य का त्याग करने वालों को शान्ति कहां से मिलेगी? भावों से भरा हुआ ह्रदय ही परमात्मा के निकट द्रवित होता है और उसी को जीवन में शान्ति मिलती है। आज का मनुष्य न घर छोड़ सकता है, न घर में शान्ति से रह सकता है। संयम एवं सादगी से ही जीवन में शान्ति और संतोष मिलता है।
मान और प्रेम दूसरों को देते रहो, इससे मन शान्त रहेगा। सुख बाहरी सुविधाओं में नहीं, आन्तरिक तृप्ति में रहता है। दूसरे को सुखी करके आनंद का अनुभव करने वाला महा सुखी है। अशांति में मुख्य कारण मनसा, वाचा, कर्मणा पाप है। जीभ से अधिक पाप करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में गूंगा होता है। जो हिसाब में घोटाला करता है, वही घबराता है।
ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसके हाथों पाप न हुए हों, लेकिन पाप करने के बाद जो पछतावा नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने लायक नहीं है। पाप करना बड़ा गुनाह नहीं, किंतु पाप कबूल न करना, किए गए पाप के लिए पश्चाताप न करना, सबसे बड़ा गुनाह है। पुण्य गुप्त रखो, पाप जाहिर करो। जिसके पाप जाहिर होते हैं, वही निष्पाप बनता है। जिसके पाप जाहिर नहीं होते, वह चाहे सजा न प्राप्त करे, परन्तु परिणाम बहुत दुःखदायी होता है।
जो पाप को छिपाता है उसे पाप छोड़ता नहीं, वरन् उसके मन में घर किए रहता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).