जो दूसरों को सुखी करता है, वही हो सकता है सुखी: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, व्यवहार और भक्ति- सभी में एक ही परमात्मा निवास करते हैं, ऐसा समझ कर व्यवहार करने से वह व्यवहार भी भक्ति बन जाता है। व्यवहार और भक्ति को अलग-अलग मत मानो। जब तक शरीर है तब तक मुट्ठी भर अन्न की जरूरत पड़ेगी ही। उस समय तक व्यवहार व्यवसाय भी करना ही पड़ेगा।
इसलिए व्यवहार अवश्य करो, किंतु व्यवहार करते समय विवेक रखो। भगवान ने जो धंधा प्रदान किया है, उसे कभी छोड़ना मत। धंधा छोड़ने से ही भक्ति होती है- यह समझना गलत है। पाप धंधा करने में नहीं, बल्कि मुफ्त का खाने में है। भक्तों ने भी धंधा तो किया ही है। देखो गौरा कुम्हार मिट्टी का काम और नामदेव जी दर्जी का काम करते ही थे।
अतः धंधा छोड़ने की आपको कोई आवश्यकता नहीं, किंतु धंधा करते समय धर्म में चूक न हो जाय, इसका ख्याल रखो। जो दूसरों को सुखी करता है वही सुखी हो सकता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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