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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परम सत्य का हम ध्यान करते हैं। सत्य एक ही है। उस सत्य को आप जिस नाम से पुकाराना चाहो पुकारो। कृष्ण कहो, राम कहो, शिव कहो, ईश्वर कहो, परमात्मा जो कहो। विवेकी उस सत्य को अनेक नामों से पुकारते हैं।
धर्म नफरत की आग फैला ही नहीं सकता। नफरत की आग को बुझाये वही धर्म है। भक्ति में जो दीक्षित करे वह धर्म है। अपने पराये का भेद मिटा दे वही धर्म है। मनुष्य व्याध्र नहीं बन सकता, न सिंह ही बन सकता है। कर्मानुसार इस जन्म में ईश्वर ने मनुष्य का शरीर दिया है तो वह वास्तव में मनुष्य ही रहेगा।
जो निद्रा में स्वप्न दिखाई देता है और जागने पर वह मिथ्या ही बन जाता है उसी तरह यह जाग्रत का संसार भी अज्ञान काल में दिखाई देता है और सत भी भासता है मगर अपने स्वरूप में जागने पर मिथ्या ही भासता है। स्वप्न तो निद्रा से उठते ही टूट जाता है मगर यह संसार तो अनादि है। अनादि अविद्या है।
इसका नाश गुरुकृपा, ईश्वरकृपा के बिना होना असंभव है। श्रीगंगाजी समुद्र की ओर बढ़ती हुई जाती है। हमारी प्रेम की धारा भी भगवान् की ओर बहती जाए तो उस प्रीति का नाम है भक्ति। भगवान में हुए प्रेम को ही भक्ति कहते हैं। हम सबके प्रेम का लक्ष्य परमात्मा हैं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).