ब्रह्मचर्याश्रम में विद्या, गृहस्थाश्रम में धन कमाना है हमारा कर्तव्य: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, द्रव्य उपार्जन करना सरल है। पुरुषार्थ करना कुदरत की देन है। परन्तु द्रव्य उपार्जन के लिए संघर्ष करना और सफल होकर उसी द्रव्य का वितरण करना कठिन है। चार पुरुषार्थ हैं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। उसी प्रकार चार आश्रम हैं। ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वान प्रस्थाश्रम, और संन्यस्थाश्रम।
ब्रह्मचर्याश्रम में  विद्या, गृहस्थाश्रम में धन कमाना हमारा कर्तव्य है। ये दोनों पाकर समाज का कल्याण करना। जो ये चीजें नहीं करता वह अच्छा नहीं है। ज्ञान “स्व” के लिये और कर्म अन्य के लिए हो यही भक्ति है। जो विभक्त नहीं है वही तो भक्त है। कबीरा सोई पीर है जो जानत पर पीर। जो पर पीर न जानिय वो तो है अपीर (निष्ठुर)।। पर हित सरिस धरम नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।

किसी के काम जो आये उसे इंसान कहते हैं। पराया दर्द अपनाये उसे इंसान करते हैं। यूँ भरने को तो दुनियां में पशु भी पेट भरते हैं। पथिक जो वांटकर खाये उसे इंसान कहते हैं। अगर गलती रुलाती है, तो रहें भी दिखाती है। मनुष्य गलती का पुतला है जो अक्सर हो ही जाती है।। जो करले ठीक गलती को उसे इंसान कहते हैं। पराया दर्द अपनाये उसे इंसान कहते हैं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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