Premanand Ji Maharaj: वृंदावन के मशहूर संत प्रेमानंद जी महाराज का सत्संग बेहद लोकप्रिय है. प्रेमानंद जी महाराज भक्तों के सवालों का उत्तर देते हैं और उन्हें भगवत प्राप्ति की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं. उनके वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल होते हैं, जिसे लोग खूब देखते और पसंद करते हैं. इन दिनों इनका एक वीडियो चारों तरफ चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसमें वे बता रहें हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पिता राजा दशरथ को सीधे बैकुंठ धाम यानी कि मोक्ष नहीं मिला था. बल्कि वे पहले स्वर्ग में रहे थे.
भक्त ने पूछा ये सवाल
आपने इंस्टाग्राम, फेसबुक पर संत प्रेमानंद जी महाराज के वीडियो जरुर देखे होंगे, जिसमें वे भक्तों को उनके सवाल का जवाब देते नजर आते हैं. इसी क्रम में एक भक्त प्रेमानंद महाराज से प्रश्न पूछा कि प्रभु राम के पिता राजा दशरथ ने राम-राम कहते हुए प्राण त्यागे. वहीं, अजामिल ने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा था और नारायण-नारायण कहते हुए प्राण त्यागे. लेकिन अजामिल सीधे बैकुंठ गए, लेकिन प्रभु राम के पिता राजा दशरथ को स्वर्ग मिला. ऐसा क्यों हुआ?
प्रेमानंद महाराज ने दिया जवाब
इस सवाल का जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा कि “राजा दशरथ प्रभु राम की लीला देखने के लिए स्वर्ग में रुके. उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि उन्हें प्रभु राम के पिता बनने का सौभाग्य मिला लेकिन वे एक श्राप के चलते उन्हें जल्दी प्राण छोड़ने पड़े और वे उनके साथ ज्यादा समय रह नहीं सके इसलिए वे उनकी लीलाएं देखना चाहते थे. व्यक्ति की अंतिम इच्छा तो प्रभु ही जानते हैं. उनके मुंह से भले ही राम-राम निकल रहा है लेकिन मन में प्रभु राम की लीला देखने की इच्छा है. यदि वे भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ चले जाएंगे तो प्रभु राम की लीला नहीं देख पाएंगे. इस वजह से राजा दशरथ के देह त्याग के बाद उनकी स्वर्ग में अच्छी व्यवस्था की गई. वहां रहकर उन्होंने प्रभु राम की सारी लीलाएं देखीं. वहीं जब प्रभु राम ने रावण का वध कर दिया तब राजा दशरथ परमपद को प्राप्त हुए यानी कि बैकुंठ चले गए.”
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जानिए स्वर्ग और बैकुंठ में अंतर
अभी तक आपके मन में ये सवाल बार-बार आ रहा होगा कि स्वर्ग और बैकुंठ में क्या अंतर होता है तो हम आपको बता दें कि अच्छे कार्य करने से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जहां उसे सारे सुख मिलते हैं. सुखों का भोग करने के बाद व्यक्ति को फिर से इस नश्वर जगत में आना पड़ता है, यानी कि जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा नहीं मिलता है. वहीं, जो लोग प्रभु को पाने की राह पर चलते हैं यानी भक्ति मार्ग अपनाते हैं, उन्हें मृत्यु उपरांत बैकुंठ की प्राप्ति होती है और वे सीधे भगवान के चरणों में स्थान पा लेता है, जिसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.