Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीशुकदेवजी के अवतरण से लेकर श्रीशुकदेवजी का राजा परीक्षित के सभा में आगमन का दर्शन करने से स्पष्ट हो जाता है कि श्रीशुकदेवजी के जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य पूर्ण रूप से सदैव विद्यमान है.
1- ज्ञान किसे कहते हैं? ज्ञानी की दृष्टि में सर्वत्र परमात्मा का दर्शन होता है. परमात्मा के अतिरिक्त कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता. श्रीशुकदेवजी की ऐसी दिव्य दृष्टि है कि भागवत में वर्णन है- ‘स्त्रीपुम्भिधा न तु सुतस्य विविक्त दृष्टिः’ श्रीशुकदेवजी को कौन स्त्री है या पुरुष है, इसका भी भेद नहीं है. उनके जीवन से भेद सर्वथा समाप्त हो गया है. उन्हें हर जगह अथवा हर किसी में श्री राधा-कृष्ण का ही दर्शन होता है. यही ज्ञान की सर्वोच्च स्थित है.
2- भक्ति- जब किसी के जीवन में भगवान की भक्ति आ जाती है, तो उसके हृदय, वाणी, मन और रोम-रोम में भगवान, भगवान की लीला एवं नाम समा जाता है. श्रीशुकदेवजी का मुख एक क्षण के लिए भी खाली नहीं रहता. भागवत में लिखा है- ‘ प्रेम्णा पठन् शनैःशनैः’ हमेशा प्रेम पूर्वक भागवत के मंत्रों का पाठ करते रहते हैं. श्रीशुकदेवजी के जीवन में भक्ति का निरंतर पूर्ण रूपेण दर्शन होता है.
3- वैराग्य- वैराग्य का अर्थ है, जिसे भगवान के अतिरिक्त कहीं भी आसक्ति न हो, उसे वैराग्यवान कहते हैं. श्रीशुकदेवजी जन्मजात महात्मा हैं. उन्होंने बाद में गृह त्याग किया ऐसा नहीं, जन्म लेते ही वन चले गये. मां-बाप की ममता भी उन्हें नहीं रोक पायी. ज्ञान-भक्ति-वैराग्य से ही व्यक्ति का जीवन महान बनता है. अंश रूप में भी ज्ञान-भक्ति-वैराग्य बना रहे तो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से संपन्न होता है. श्रीशुकदेवजी का जीवन चरित्र श्रोता वक्ता के जीवन में ज्ञान,भक्ति और वैराग्य प्रदान करने वाला है.
राजा परीक्षित की सभा में श्रीशुकदेवजी का आगमन एवं उत्सव महोत्सव मनाया गया. सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना. श्रीदिव्य घनश्याम धाम, श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा. पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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