Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, नाघं प्रजेश बालानां वर्णये नानुचिन्तये। देवमायाभिभूतानां दण्डस्तत्र धृतो मया।। जब किसी के अघ अर्थात पाप का मुक्त कंठ होकर हम किसी दूसरे के सामने वर्णन करते हैं तो उसके पाप में दशांश भागीदार हम भी होते हैं। हम नहीं भी कुछ बुरा करें, तब भी दूसरों की निंदा करने से हम स्वयं पाप के भागीदार बन जाते हैं। कई बार लोग बहुत आश्चर्य करते हैं कि हम तो कुछ बुरा नहीं करते फिर भी हम को दंड क्यों मिलता है। धर्म की गति अत्यंत सूक्ष्म है। इसीलिए शास्त्रों को सुनना पढ़ना अति आवश्यक है।
कई बार हमें पता भी नहीं होता फिर भी हमसे पाप हो रहा है। दूसरों के अघ अर्थात् पाप का इधर-उधर गाने से दूसरी बहुत बड़ी हानि यह होती है कि- हमने जो भगवत गुणगान की योग्यता हासिल की है वह समाप्त हो जाती है। फिर हम दूसरों के अघ अर्थात् पाप को ही गाते फिरेंगे और अत्यन्त हानि प्राप्त कर लेंगे। कई लोग बड़े व्यावहारिक होते हैं। किसी की बातचीत ज्यादा नहीं करते, लेकिन मन में चिंतन करते रहते हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान शिव कहते हैं कि जब हम दूसरों के पाप का चिंतन करते हैं तो हमारा मन मालिन होता है। जैसे भगवत चिंतन करने से मन अंतःकरण पवन बन जाता है वैसे पाप चिंतन से मनमलिन होता है।
दूसरी हानि यह है कि हमने बड़े भारी प्रयास से जो भगवत चिंतन की योग्यता हासिल की है, वह योग्यता भी समाप्त हो जाती है। इसलिए दूसरे के पाप का इधर-उधर वर्णन भी नहीं करना चाहिए और स्वयं भी चिंतन नहीं करना चाहिए। सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू, धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)