Ramcharitmanas: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या धाम एक बार फिर त्रेतायुग के तरह सज रही है. 22 जनवरी को रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान होंगे. राम जन्मभूमि पर बन रहे राम मंदिर से देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में उत्साह का माहौल है. उत्साह हो भी क्यों न क्योंकि, भगवान राम की महिमा तो संपूर्ण ब्रह्माण्ड में अद्वितीय है.
भगवान की एक छवि को देखने के लिए न सिर्फ हम सभी बल्कि समस्त देवता गण भी व्याकुल रहते हैं. एक बार तो ऐसा हआ था कि श्रीधाम अयोध्याजी में एक महीने के लिए रात ही नहीं हुई. भगवान राम के बाल स्वरूप की मनमोहक छवि को देख सूर्य देव अपना रथ चलाना भूल गए थे. जिसके चलते एक महीने तक पावन नगरी अयोध्या में दिन ही दिन रहा.
रुका रह गया था सूर्य देव का रथ
यूं ही नहीं अयोध्या को पावन नगरी कहा जाता है, बल्कि यहां त्रेताकाल में भगवान राम के जन्म के बाद लगभग देवताओं का आगमन हुआ है माना तो यह भी जाता है कि यहां 33 कोटि के देवी-देवाता भी पधार चुके हैं. रामचरितम मानस के अनुसार, त्रेताकाल में भगवान राम के जन्मोत्सव के समय उनके बाल स्वरूप की छवि देखने के लिए सूर्य देव सहित 33 कोटि के देवी-देवता भी अयोध्या आए थे. इस दौरान सूर्य देव भी अपना रथ लेकर अयोध्या नगरी आए थे. भगवान राम के मनमोहक छवि को देखकर सूर्य देव अपना रथ ही चलाना भूल गए. फिर हुआ यूं कि एक महीने तक अयोध्या धाम में रात ही नहीं हुई.
इसका वर्णन रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी ने किया है.
मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ॥
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी अवधि भाषा में लिखे हैं कि जब भगवान राम अयोध्या में जन्म लिए तो सूर्यदेव रामलला के मनमोहक बाल स्वरूप को देखते ही रह गए और पूरे एक महीने बीत गए. रामलला के सुंदर रूप को देख कर भगवान सूर्य देव अपनी सुदभुद खो बैठे और उनकी नजरें श्री राम के सुंदर रूप से एक पल के लिए भी ओझल नहीं हुई और यह बात कोई नहीं जान पाया और देखते ही देखते एक महीने बीत गए. यह बात खुद सूर्य देव को भी समझ नहीं आया कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है. जिसको आगे गोस्वामी जी लिखते हैं…
यह रहस्य काहूँ नहिं जाना। दिनमनि चले करत गुनगाना॥
देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा॥1॥
इस रहस्य की बात उस समय कोई समझ ही नहीं पाया. भगवान भास्कर भगवान राम का गुणगान करते हुए वहां से अपने लोक चले गए. साथ ही यह दिव्य महोत्सव देखने आए अन्य देवी-देवता भी सूर्य देव के रथ के पीछे-पीछे अपने लोक की तरफ चल दिए.
भगवान शिव भी पहुंचे थे अयोध्या
औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी॥
काकभुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ॥2॥
यहां तक कि शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि मैने आपसे एक बात छुपाई है लेकिन आज मैं आपको यह बात बता रहा हूं कि काकभुशिण्डि और मैं दोनों श्री राम के जन्म के समय अयेध्या नगरी में ही थे. लेकिन मनुष्य रूप धारण करने के कारण हम दोनों को सिवाय श्री राम के कोई नहीं पहचान सका. क्योंकि प्रभु राम सब जानते हैं और वह अंतर्यामी हैं.
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अयोध्या धाम में जिस जगह पर भगवान सूर्य का रथ रुका था, वह स्थान पावन नगरी अयोध्या से 5 किलो मीटर की दूरी पर है. यहां भगवान भास्कर का भव्य मंदिर है. इस मंदिर में रविवार के दिन भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां एक सूर्य कुंड भी है.
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