Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जहाँ भेद, वहाँ भय- जहां भेद है, वहीं भय दिखाई देता है। प्रत्येक प्राणी में प्रभु की चैतन्यमयी प्रतिमा के दर्शन हो रहे हैं। जब सबके भीतर प्रभु बैठे हैं, तो डर किसका? बैर किसके साथ? जहां हृदय की एकता है, वहां ही निर्भयता है। जो भगवद्मय है, वही संदेह रहित है। प्रेम का पूर्णविराम विशिष्टाद्वैत भाव में है।
मुक्ति शरीर के मरने पर नहीं, मन के मरने पर प्राप्त होती है। सत्संग, सत्कर्म और संकीर्तन से प्रभु मिलते हैं। ज्ञानमार्ग त्याग की सूचना देता है, भक्तिमार्ग समर्पण चाहता है। आत्मा-परमात्मा का दिव्य मिलन ही महारास है। स्त्री पुरुष का भेद भूलने पर ही गोपी भाव जाग्रत होता है। निष्काम भाव का सेवन करके ही मुक्त हुआ जाता जा सकता है।
आंख और कान के दरवाजे पर सात्विकता के चौकीदार नियुक्त करो। काम कच्चा सुख है, सच्चा सुख श्री राम हैं। काम है तो शत्रु , किन्तु मित्र जैसा दिखावा करके धोखा देता है। काम ही जीव को बन्धन में डालता है, काम ही जीव को ईश्वर-विमुख करता है, काम ही जीव को रुलाता है। बिलासी लोगों से तो भगवान भी दूर भागते हैं। अति कामी का संग ही बड़ा कुसंग है। उससे बचते रहो। जीव प्रकृति का दास बनकर घूमता है, इसीलिए दुःखी होता है।
शिव प्रकृति के पति हैं, इसीलिए वे उसे बस में रख सकते हैं। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).