Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वेद-उपनिषद् में परमात्मा का वर्णन करते समय ‘ नेति-नेति जैसी निषेधात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है, किन्तु भागवत आदि वैष्णव-शास्त्रों में ‘अरे , यह रहा मेरा भगवान ! ‘जैसे विधेयात्मक भाव भरे हुए हैं। जो विवेक , वैराग्य-षट् सम्पत्ति, मुमुक्षा आदि साधन चतुष्टय से सम्पन्न है, वही वेदान्त को समझ सकता है।
कलियुग का मानव समाज बिलासी होगा और वह वेदान्त का तत्वज्ञान पचा नहीं सकेगा – ऐसा महसूस करके ही वेद-व्यास जी ने भागवत का सर्जन किया। वेदान्त विरक्त के लिए है, परन्तु जिसे सवेरे या दोपहर को चाय न मिलने पर सरदर्द होता हो वह वेदान्त क्या समझेगा?अतः हमारे हित का खूब विचार करके ही व्यास जी ने भागवत के दर्शनशास्त्र का सर्जन किया।
ज्ञानियों और योगियों को जो आनन्द ध्यान में मिलता है, वही आनन्द गृहस्थ को घर में मिल सके – इस दृष्टि से ही व्यास जी ने खूब परिश्रम करके भागवतशास्त्र की रचना की। जीवन का एक-एक क्षण अतिशय मूल्यवान है, ऐसा समझ करके प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए ,समय का नाश सर्वनाश है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).