भावना का नाश करके उसे भजननन्दी बनाना ही सच्चे संत का होता है लक्ष्य: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, बचपन में ही जीवन का गठन होना प्रारम्भ होता है। उस समय सत्संग के अभिसिंचन की आवश्यकता है। सच्चे सन्त के दर्शन ही दुर्लभ हैं, फिर उनकी सेवा तो अत्यन्त दुर्लभ है। गरीबी का सबसे उत्तम गुण दैन्य है। सच्चे संत अपने शिष्य को सम्पत्ति या सन्तति नहीं देते हैं, वह तो उसे सन्मति – सद्बुद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
सच्चे सन्त अपने शिष्य को संसार के सुख प्रदान करके अधिक प्रमादी बनाने से दूर रहते हैं। शिष्य के विकार – भावना का नाश करके उसे भजननन्दी बनाना ही सच्चे संत का लक्ष्य होता है. पैसा यदि पसीने में भीगने के बाद प्राप्त किया गया होगा, तभी सद्बुद्धि की रक्षा होगी।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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