Reporter
The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जिसे प्रभु मिलन की तीव्र चाह है, जिसे प्रभु दर्शन की तीव्र आतुरता है, उसे यदि प्रभु-दर्शन मिलने से पहले ही देहत्याग करना पड़े, तो भी उसकी मृत्यु मंगलमय बन जाती है।लेकिन जिसके मन में लौकिक सुख का उपयोग करने की वासना रह जाती है, उसकी मृत्यु बिगड़ जाती है।
लौकिक सुख का उपभोग करने की वासना ही सबसे बड़ा दुःख है और अशांति का उद्गम स्थान है। सुख का चाहे जितना उपभोग किया जाय; फिर भी तृप्ति या शांति नहीं मिलती। चाहे जितने भोग का उपभोग किया जाय, फिर भी वे अधूरे ही रह जाते हैं। जब ईश्वर जीव से मिलता है, तब पूर्ण रूप से मिलता है।
अधूरेपन से नहीं। इसीलिए जीवात्मा को भोग का उपभोग करने की वासना के पीछे भागने के बदले भगवान के मिलन की भावना निरन्तर रखनी चाहिए। जिसके मन में भगवान के दर्शन-मिलन की चाह उत्पन्न होती है, उसकी लौकिक सुख उपभोग की वासना नष्ट हो जाती है।
जैसे हीरे को हीरा काट सकता है, वैसे वासना को वासना ही काट सकती है।वासना का विषय कोई स्त्री हो या पुरुष, अथवा वासना का विषय कोई जड़ पदार्थ हो, इससे मृत्यु बिगड़ जाती है। लेकिन वासना का विषय यदि परमात्मा का मिलन हो तो वही वासना जीवन को सुधारती है और मृत्यु को मंगलमय बनाती है।
मानव की वासना का विषय तो परमात्मा ही होना चाहिये। मानव के मन में ऐसी चाह उठनी चाहिये कि मुझे परमात्मा के चरणों में पहुंचना है, परमात्मा के दर्शन करने हैं, परमात्मा को पाना है। यह चाह ही उसके जीवन को अलौकिक कर देगी और मृत्यु को भी सुगन्धित कर देगी।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).