Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान के नाम की महिमा का वर्णन सभी युगों में किया गया है। लेकिन कलियुग में केवल एक भगवान के नाम का ही आश्रय है। भगवान के नाम से कल्याण के सारे साधन, योगिक क्रियाएं सिद्ध हो जाती है। उच्च स्वर से भगवान के नाम का कीर्तन करने से कुंडलिनी शक्ति भी जागृत हो जाती है। वैसे भी योगिक क्रिया कुंडली के उत्थान के लिये वाणी से बोलने का विधान है। ऊंचे स्वर से जब हम नाम लेते हैं तो कुंडलिनी पर एक धक्का लगता है।
आपके मूलाधार में कुंडलिनी का निवास है और जब वह जागृत होती है तो आपके जीवन को बदल देती है। जैसे बिजली के दो तार होते हैं- नेगेटिव और पॉजिटिव, दोनों जब मिलते हैं तब प्रकाश होता है, न दो नेगेटिव तारों से प्रकाश होता है न दो पोजेटिव तारों से प्रकाश होता है। शक्ति मूलाधार में है। मूलाधार कहते हैं चौकड़ी मारकर बैठने पर शरीर का जो अंश, जो अंग जमीन को स्पर्श करे, मूल, उसका नाम मूलाधार है। वहां साढ़े तीन लपेटा कुंडलिनी शक्ति है, स्वयंभू लिंग में प्रतिष्ठित होकर पड़ी है। वह अनादिकाल के पापों के कारण मुर्छित है।
भजन करते-करते, योगाभ्यास करते-करते या नाम जपते-जपते या ऊंचे स्वर से कीर्तन करने से, जब कुंडलिनी में चोट लगती है तो उसमें कम्पन होता है। उसमें कम्पन होने के बाद, बार-बार जब आघात होता रहता है और हृदय शुद्ध होने लगता है, फिर वह अंगड़ाई लेकर उठाती है।कुंडलिनी के जागरण के बाद जीवन में अनंत प्रकाश होता है और अंतर्जगत का दरवाजा खुल जाता है। ईश्वरीय ज्ञान और ईश्वरीय दिव्य आभा प्रभा और अंतर्जगत के सारे चमत्कार भासित होने लगते हैं। कीर्तन थोड़ा ऊँचे स्वर से बोलना चाहिये। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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