सभी धर्म शास्त्रों में तीर्थगुरु पुष्कर की महिमा का किया गया है वर्णन: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पुष्कर तीर्थ में तप की बहुत महिमा है। सभी धर्म शास्त्रों में तीर्थगुरु पुष्कर की महिमा का वर्णन किया गया है। कोई ऐसे ऋषि महर्षि नहीं हुए, जिन्होंने पुष्कर की पावन भूमि पर तप न किया हो। जितने भी सत्कर्म बताये गये हैं, उन्हें तप कहा गया है।
तप किसे कहते हैं? धर्म शास्त्रों में जो तप की विशिष्ट व्याख्या की गई है, उसमें कहा गया है कि- इन्द्रियों को उनके तत्-तत् विषयों से मोड़कर, मन को भगवान से जोड़ने का नाम तप है। वेदों में कर्तव्य पालन को सबसे बड़ा तप कहा गया है।विद्यार्थी का सात्विक भाव से विद्या अध्ययन करना तप है।
गृहस्थ आश्रम में- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव, और आचार्य देवो भव, की प्रबल निष्ठा रखकर जीवन जीना और गृहस्थ के सारे कर्तव्यों का पालन करना तप है। बाणप्रस्थ आश्रम वाला व्यक्ति अपने जीवन के निर्वाह भर कर्म करते हुए समाज की सेवा करे, धर्म के कार्यों में हाथ बटावे यह तप है।
सन्यासी सब तरफ से मन को हटाकर, एक ईश्वर में ही मन लगाकर रखे, और ईश्वर की आराधना करे, अन्यत्र कहीं भी उसका मन नहीं जाना चाहिए, यह सन्यासी का तप है। भारतीय संस्कृति में चार आश्रम बताये गये हैं। अगर नियम पूर्वक हम जीवन जिये तो सौ वर्ष की आयु पाना सम्भव है।
चारों आश्रमों के साथ श्रम शब्द लगा है। ब्रह्मचारी विद्या अध्ययन में श्रम करे, पसीना बहावे, तो ऊंचाई को प्राप्त करेगा।गृहस्थ अपने गृहस्थ जीवन में श्रम करे। माता-पिता परिवार समाज की सेवा करे, पसीना बहावे,वानप्रस्थी समाज और धर्म के कार्यों में अधिक से अधिक श्रम करे और सन्यासी अपने भजन में श्रम करे,अधिक से अधिक भजन साधन करे।
तप से संस्कृत में तपति शब्द बनता है, जिसका अर्थ होता है ऊपर की तरफ उठाना। अगर कोई आलसी है, निद्रा,तन्द्रा, प्रमाद में जीवन को बिता रहा है तो तप का उल्टा पत होता है। पत से संस्कृत में पतति शब्द बनता है। पतति का अर्थ होता है  नीचे की तरफ गिरना।पानी आग के ऊपर तपता है तो वाष्प बनकर बादल बनता है, फिर बरसात होती है और सबका भला होता है।
पानी अगर तपता नहीं तो नीचे की तरफ गिरता है और कीचड़ बन करके समाप्त हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में जितनी ऊंचाई पाना चाहिए था नहीं पा सका, तो उसके पीछे तप का अभाव ही कहा जायेगा और आज कोई व्यक्ति अपने जीवन में बहुत ऊंचाई प्राप्त कर सका है तो उसके पीछे तप ही मुख्य कारण है। सबको अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और ईश्वर की आराधना करना चाहिए।
तीर्थ में अगर कुछ किया जाए तो कई गुना अधिक फल मिलता है और पुष्करतीर्थ में किया गया तप, किया गया सत्कर्म, अनन्त गुना फल देने वाला होता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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