Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवतमहापुराण तो भवरोग की उत्तम दवा है। भगवान श्रीराधाकृष्ण का चिंतन ही सबसे बड़ा योग है। संसार का चिंतन, विषयों का चिंतन, संसार की बुराइयों का चिंतन सबसे बड़ा रोग है। इसी को भवरोग कहते हैं। भवरोग को दूर करने के लिए भागवत कथा उत्तम औषधि है।
औषधि तो उत्तम है, परंतु वैद्य को यदि निदान करना न आए और रोगी पथ्यापथ्य का बराबर ख्याल न रखे तो रोग पूरा नहीं मिटता। इसी तरह भागवत का वक्ता यदि पूर्ण वैराग्यवान न हो और श्रोता पूर्ण भक्ति वाले न हों तो भागवत की कथा भवरोग की उत्तम औषधि होते हुए भी भवरोग को मिटा नहीं सकती।
भागवत के वक्ता और श्रोता को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करके सम्पूर्ण स्नेह, शांति एवं सद्भावना से युक्त होना चाहिए।ऐसे वक्ता और श्रोता ही भागवत का पूरा लाभ ले सकते हैं। गर्भावस्था में स्त्री यदि सत्कर्म करे तो उसे ज्ञानी पुत्र प्राप्त होता है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).