Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, उपवास का अर्थ केवल अपने शरीर को आहार नहीं देना यह नहीं होता। उपवास का अर्थ है- उप माने समीप, वास माने बसना। आप सभी सत्य के समीप निरन्तर रहने के लिए प्रयत्नशील हैं और जो इस प्रयास में लगा हुआ है वह उपवासी है। श्री रामचरितमानस में, गोस्वामी जी की लेखनी में, सत्य रूप धर्म को सबसे श्रेष्ठ बताया है। श्रीमद् भागवत में धर्म को परिभाषित करते हुए भगवान वेदव्यास जी ने कहा- भगवान में जिसको प्रेम हो जाये बस वही मनुष्य का परम धर्म है। ईश्वर के प्रति प्रेम होना चाहिए और ईश्वर केवल एक ही स्थान पर रहने वाला नहीं है।
ईश्वर कहते हैं संतजन विश्व चेतना को। एक है व्यष्टि चेतना और एक है समष्टि चेतना। व्यष्टि चेतना को धर्मशास्त्र आत्मा कहते हैं और समष्टि चेतना को धर्मशास्त्र परमात्मा कहते हैं। उस परमात्मा के प्रति प्रेम करावे बस वही धर्म है। इसका मतलब यह है कि- समष्टि चेतना के प्रति जिसके हृदय में अनुराग हो जाता है, प्रेम हो जाता है, वही व्यक्ति सच्चा धार्मिक है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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