Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ध्येय और लक्ष्य- बिना निश्चय के चल दोगे तो बताओ कहाँ जाओगे? इस जीवन में क्या करना है? पहले ध्येय और लक्ष्य बना लो। जरा सोचो, इस विषय की ओर चलने वाले और जानने वाले अगर आप लोगों के बीच से नहीं मिलेंगे तो दुनियां में और कहां मिलेंगे। भगवान् की तरफ से मनुष्य मात्र का यह अंतिम जन्म है।
करण भगवान का यह संकल्प है कि मेरे दिए हुए इस शरीर से यह अपना कल्याण कर सकता है। अतः यह अपना कोई संकल्प न रखकर केवल निमित्त मात्र बन जाये तो भगवान् के इस संकल्प से मनुष्य का कल्याण हो जाये। मनुष्य कर्मबंधन से तभी मुक्त हो सकता है, जब वह प्रभु से मिले शरीर, बुद्धि, वस्तु, योग्यता और सामर्थ्य को संसार की सेवा में लगा दे और बदले में कुछ भी न चाहे।
वास्तविक अर्पण से भगवान् बहुत प्रसन्न होते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि अर्पण करने से भगवान् को कोई सहायता मिलती है, परन्तु अर्पण करने वाला कर्मबंधन से मुक्त हो जाता है और इसी में भगवान् की प्रसन्नता है। सम्पूर्ण कर्म भगवान् को अर्पण करने के बाद भी अपने में जो कामना, ममता, संताप प्रतीत होते हैं, उन्हें भी भगवान् को अर्पित कर दें। मेरा स्वरूप क्या है? इस तत्व को मात्र मनुष्य ही जान सकता है।
मनुष्य जन्म के सिवाय और कोई जानने की जगह नहीं है। यह मौका मात्रा मनुष्य शरीर में है, मनुष्य जन्म में है। अगर मनुष्य बनकर भी यह काम नहीं किया तो मनुष्य जीवन निरर्थक गया। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).