Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जीवात्मा का यदि कोई सच्चा घर है तो वह परम कृपालु परमात्मा के चरणारविंद ही हैं।जीवात्मा जिसे अपना घर मानता है, वह तो उसे माता-पिता के विवाह के बाद ही प्राप्त होता है। इसलिए जीवात्मा जिसे अपना घर मानता है, उस घर को तो किसी भी समय छोड़ना ही है।
जिस मकान में हम बहुत समय से रह रहे हैं, उसे छोड़ना पड़े तो कितना दुःख होगा? जीवात्मा का भी इस शरीर के साथ अनेक वर्षों का सम्बन्ध है, उसे जब शरीर छोड़ना पड़ता है, तब वह बहुत छटपटाता है। शरीर छोड़ने के लिए छटपटाना न पड़े, ऐसी परिस्थिति बनानी हो तो जीवात्मा को दृढ़ता से मानना होगा कि यह शरीर मेरा वास्तविक घर नहीं है।
मेरा वास्तविक घर तो परमात्मा के चरणों में ही है। लोग यात्रा के लिए निकलते हैं, तब रात में जहां धर्मशाला होगी वहां ठहर जाते हैं। बाद में दूसरे दिन आगे जाना हो, तब दूसरी धर्मशाला में ठहरते हैं। इस तरह यात्रा के समय अनेक धर्मशालाओं में ठहरते हैं और अनेक धर्मशाला छोड़ते हैं। लेकिन एक भी धर्मशाला छोड़ने का उन्हें दुःख नहीं होता, क्योंकि धर्मशाला को उन्होंने अपना वास्तविक घर मानकर उसमें झूठी ममता नहीं की है।
जीव का शरीर के साथ का सम्बन्ध भी इसी तरह का होना चाहिए। इस शरीर को अनन्त की यात्रा की एक धर्मशाला मानकर ही उसे चलाना चाहिए। यात्रा में आगे बढ़ने के लिए इस शरीर रूपी धर्मशाला को मन छोड़ना ही है – इस वास्तविकता को जीवात्मा को सर्वदा लक्ष्य में रखना चाहिए।
इस बात का ध्यान सतत बना रहेगा तो जीवात्मा शरीर की ममता में न फंसकर परमात्मा से अटूट प्रेम कर सकेगा। इससे शरीर त्याग का समय – मृत्युप्रसंग – जीव के लिए मंगलमय बन जायेगा।इसलिए मृत्यु को मंगलमय करना हो तो परमात्मा से ही प्रेम सम्बन्ध रखो। संसार के स्नेह की तरफ से मुख मोड़ो, क्योंकि संसार से आति स्नेह करने से मृत्यु बिगड़ जाती है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).