Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मनुष्य जन्म का फल क्या है? मनुष्य जन्म का फल है भगवान की प्राप्ति। मानव धर्म के प्रणेता श्रीमनुजी महाराज व्याकुल होकर कहते हैं- श्रीरामचरितमानस में वर्णन आता है।
होय न विषय विराग भवन बसत भा चौथपन।
हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु।।
बरबस राज सुतहि तब दीन्हा। नारि समेत गवन बन कीन्हा।।
मनु महाराज सपत्नीक नैमिषारण्य चले गये।
द्वादश अक्षर मंत्र पुनि जपहिं सहित अनुराग।
वासुदेव पद पंकरुह दंपति मन अति लाग।।
मनु महराज भजन करने लग गये। किस लिये भजन करने लगे? क्यों कि भारतवर्ष में मनुष्य शरीर पाने का क्या फल है? बता रहे हैं, भारतवर्ष में मनुष्य शरीर पाने का फल है भगवत प्राप्ति। श्री मनु महाराज का संकल्प क्या है?
देखहिं हम सो रूप भरि लोचन। कृपा करहु प्रनतारति मोचन।।
मनु महाराज को भगवान का दर्शन नैमिषारण्य में हुआ।
नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर श्याम।
लाजहिं तन शोभा निरखि कोटि-कोटि सत काम।।
मनुष्य शरीर पाने का यही फल है, इसी जन्म में भगवान का दर्शन हो। लेकिन दर्शन तब हो, जब दर्शन की इच्छा हो।भूख लगने पर रोटी की जितनी इच्छा होती है उतनी इच्छा भगवान को पाने की हो जाय, तो भगवान प्राप्त हो जायें। प्यास लगने पर जितनी व्याकुलता होती है कहीं से पानी मिल जाय, उतनी व्याकुलता भगवान को पाने की हो जाय तो भगवान मिल जायें।
श्री गोवर्धन धाम के संत श्रीप्रिया शरण बाबा का एक वाक्य पढ़ने को मिला। मनुष्य जितना उद्यम संसार के नाशवान वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए करता है, उसका दसवां हिस्सा भगवान की प्राप्ति के लिए करे, तो भगवत प्राप्ति का मार्ग सुगम हो जाये।मनुष्य नाशवान वस्तुओं के लिए दिन-रात अथक परिश्रम करता है। भगवान की आराधना उपासना के लिए थोड़ा सा समय भी नहीं निकाल पाता है।
किस लिये कमा रहे हो? खाने के लिए। किस लिए खा रहे हो? कमाने के लिए। बस कामना खाना यदि यही है, तो हम सबसे अच्छे पशु हैं।मनुष्य को संसार के भोग परिश्रम से प्राप्त हुए, वही भोग पशुओं को बिना परिश्रम के प्राप्त हो गये, श्रेष्ठ कौन हुआ? मनुष्य पेट भरने के लिए न जाने कितनों से छल कपट करता है। जीव जंतुओं को पेट भरने के लिए किसी छल कपट की आवश्यकता नहीं है।
श्रीराम स्नेही संप्रदाय के आचार्य श्री दरियाव जी महाराज की वाणी है-
राम नाम नहिं हृदय धरा, जैसे पशुआ वैसे नरा।
नर पशुआ उद्यम करि खावे, पशुआ तो जंगल चरि आवे।।
पशुआ आवे पशुआ जाय, पशुआ रहे वो पशुआ खाय।
राम नाम जाना नहिं भाई, जनम गया पशुआ की नाई।।
राम नाम से नाहीं प्रीति, यह है सब पशुवन की रीति।
जन दरिया जिन राम न गाया, पशुआ ज्यों ही जनम गवांया।।
श्रीमद्भागवत महापुराण में बृजवासी भक्त कहते हैं- आंखों का फल है राधा कृष्ण भगवान का दर्शन। नहीं तो ये नेत्र व्यर्थ हो जायेंगे। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).