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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वास्तव में सत्य न नूतन है, न पुरातन है। सत्य तो सनातन है। उस सनातन सत्य की बात कहने वाले ये शास्त्र हैं। शास्त्र वचन और गुरु वचन पूर्णनिष्ठा पूर्वक मानना श्रद्धा है। शास्त्र प्रमाण श्रेष्ठ है। शब्द प्रमाण श्रेष्ठ है।
आज सभी कहते हैं कि हमारे पास सब कुछ है, लेकिन शांति नहीं है। सो हम क्या करें ? भैया शांति के लिए कुछ करना नहीं है, बस जो कर रहे हो वो सब बंद कर दो। भीतिजन्य शांति किसी काम की नहीं। प्रीतिजन्य शांति चाहिए। भीतिजन्य शांति श्मशान की शांति है। अध्यात्म से ही प्रीतिजन्य शांति होगी।
भगवान् की कथा अर्थात् नीरस जीवन को सरस करे वही है कथा। जीवन में आनंद नहीं है क्योंकि रस नहीं है। रस में सराबोर कर कर दे वही है कथा और इससे आनन्द, मस्ती, मौज से भर जायेंगे। रस नाम परमात्मा का है। जीवन में पैसा है परन्तु प्रभु नहीं हैं इसलिए रस नहीं है।
इसका कारण यह है कि प्रेम नहीं है। आज सम्बन्ध स्वार्थी हो गये हैं। आज मनुष्य को दूसरे मनुष्य पर भरोसा नहीं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य का प्रत्येक व्यवहार अविश्वास से भरा हुआ है। मनुष्य को मनुष्य पर भरोसा नहीं और बातें करता है ईश्वर पर विश्वास की। स्वार्थ में विश्वास नहीं होता। विश्वास समर्पित होता है।
आज हम जीवन नहीं जीते जीवन को ढो रहे हैं, बोझ की भांति। मजदूर जिस प्रकार बोरी उठाता है उसी प्रकार हम भी जीवन को ढोते हैं इसलिए जीवन भार रूप लगता है। थक जाते हैं क्योंकि भटक गये हैं। संसार राम के नाम का जप करता है। भरत जी नंदीग्राम में रहे और राम का जप करते रहे। श्री राम जी वन में भरत जी के नाम का जप करते रहे।
भक्ति का यह चमत्कार है। जो निष्काम सेवा करेगा उसे भगवान् फल देते ही हैं। इस भगवद् सेवा का फल भगवद्भक्ति है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).