कर्म के फल में नहीं होनी चाहिए आसक्ति: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोळऽस्त्वकर्मणि।। इसका अर्थ ऐसा नहीं है कि आप फल को न चाहो और कर्म करते रहो। ऐसा अर्थ अगर करोगे तो मुश्किल में पड़ जाओगे। फिर कर्म में हमें कौन प्रेरित करता है? हम सब इस सत्संग मण्डप में  बैठे हैं, सुन रहे हैं, कुछ मिलने वाला है इसलिए सुन रहे हैं।
हमें कौन प्रेरित करता है, कर्म में लगाता है, इस बात को भगवान श्रीकृष्ण गीता में बहुत सुंदर ढंग से समझते हैं। कर्म फल की आसक्ति नहीं, मगर प्रेम हमें अपने कार्यों में प्रेरक है। भगवान से कुछ चाहिए कि भगवान को चाहते हो? इन दोनों में फर्क है। हम कर्म से चाहने वाले लोग हैं, हम कर्म को चाहने वाले लोग नहीं है और जब तक हम कर्म से चाहते रहेंगे, तब तक हमारा कर्म योग नहीं बन सकता। कर्म योग नहीं हो सकता है, इसलिए कर्म को चाहें।
कर्म के फल में आसक्ति नहीं होनी चाहिए। अगर आसक्ति रखकर कर्म करोगे तो आप पूरे के पूरे अपने कर्म में डूब नहीं सकोगे। आप किसी कार्य में अगर डुबोगे नहीं, उसमें एकाग्र नहीं हो सकोगे तो आनंद की बात तो दूर रही, आपको कर्तव्य कर्म में रुचि भी नहीं आयेगी। इसलिए आप अपना काम डूब कर करो और ऐसी श्रद्धा रखो कि मुझे अच्छे से अच्छा फल मिलेगा।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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