अन्तकाल में संसार के किसी भी चित्र का चिंतन करने से मन हो जाता है खराब: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अन्तकाल में संसार के किसी भी चित्र का चिंतन करने से मन खराब हो जाता है, क्योंकि संसार के सब चित्र-आकृतियां माया से बनी हुई है। संसार में किसी आकार का चिंतन किया जायेगा तो भी मन में विकार ही पैदा होगा। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, भगवान शंकर और प्रभु के सभी स्वरूप माया से रहित शुद्ध चैतन्य है।

उनमें न रक्त है, न मांस है, न हड्डियां हैं, प्रभु के स्वरूप अप्राकृतिक, अलौकिक और दिव्य हैं। भगवान् के स्वरूप देखने में भले ही हमारे-आपके जैसे ही दिखें लेकिन भीतर से अप्राकृत और अलौकिक हैं। ईश्वर के किसी भी स्वरूप से सच्चे हृदय से प्रेम करना चाहिए। यदि ऐसा सच्चा प्रेम न करें तो अन्तकाल में मन-चित्त संसार के चित्रों में अटक जाता है और मरण बिगड़ जाता है। मरण भक्ति से ही सुधरता है।
ज्ञान और योग तो अन्तकाल में दगा भी करते हैं। उनको भक्ति से मिलाया हो तो ही सफल होते हैं। भक्ति की उपेक्षा करे, सेवा-पूजा को गोण समझे, ऐसे लोग ज्ञानी हो, तो भी मरण बिगड़ जाता है।कुछ घमंडी लोग ऐसा समझते हैं कि ईश्वर को मूर्ति में देखने वाले अज्ञानी हैं। वास्तव में ऐसी गलत धारणा रखने वाला भी बड़ा अज्ञानी है। ईश्वर मूर्ति नहीं है, लेकिन हमारी भक्ति सच्ची है तो मूर्ति में परमात्मा प्रकट होते हैं।
यदि हम ईश्वर को सर्वव्यापक मानते हैं तो ईश्वर मूर्ति में नहीं है- यह कैसे कह सकते हैं? जो सब में विराजता है, वह मूर्ति में भी आवश्यक है। इसीलिए परमात्मा की मूर्ति आंखों में रखो। परमात्मा की मूर्ति आंखों में तभी रहती है, जब जीव को विश्वास हो जाये कि संसार का सारा सौंदर्य बिल्कुल झूठा है और एकमात्र ईश्वर का सौंदर्य ही सच्चा है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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