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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्तमाल की गंध को लेत भक्त अलिआय।भेंक विमुख ढ़िग ही बसें रहें कीच लपटाय।।
भक्त कौन है? भक्त की उपमा भ्रमर से दी गयी है। सरोवर में कमल खिलता है, तो भ्रमर को एक योजन अर्थात् चार कोश, बारह किलोमीटर की दूरी से भंवरे को सुगन्ध आ जाती है। भ्रमर को पता लग जाता है कि- अमुक सरोवर में कमल खिला है। अपने निवास स्थान से भंवरा चलता है, कमल की स्तुति करता है, कमल को दंडवत करता है, परिक्रमा करता है। फिर कमल खिल जाता है, उस कमल की कर्णिका के बीच में भंवरा बैठ जाता है। मकरंद पीकर मस्त हो जाता है।
भगवान के भक्त को बहुत दूर से पता लग जाता है कि- कहाँ कथा कीर्तन हो रहा है, कहाँ साधु संत पधारे हैं, कहाँ मंदिर में ठाकुर जी की सेवा हो रही है। भक्तजन समय निकालकर भगवान की भक्ति में शामिल हो करके आनंद लाभ प्राप्त करते हैं। जो भगवान के भक्त नहीं है, भगवान से विमुख हैं, उनकी उपमा मेंढक से दी गई है। मेंढक तालाब के किनारे पैदा हुआ, मेंढक कमल के जड़ में रहने वाला है। मेंढक वहीं टर-टर करता है, कीड़े बिन-बिन के खाता है। उसको पता ही नहीं कि कहाँ कमल खिला है।
भेंक बिमुख ढ़िंग ही बसें रहें कीच लपटाय।।
भगवान से जो विमुख हैं, नास्तिक हैं, भौतिकवादी हैं। जिनकी ईश्वर के प्रति आस्था नहीं है, वे पाप की कीच में सने हुये रहते हैं। भोगों के बीच में सने हुये रहते हैं। उनके जिह्वा तो है। लेकिन सद्-चर्चा, स्तुति-वंदना, कथा-कीर्तन के लिये नहीं है।
जो नहिं करहिं राम गुन गाना।
जीह सो दादुर जीह समाना ।।
उनकी जिह्वा तो मेंढक की जीभ के समान टर-टर, वे सुबह से शाम तक करते रहते हैं। व्यर्थ बकवास, व्यर्थ वार्तालाप, उनको समय की कीमत मालुम नहीं है, मनुष्य जन्म की दुर्लभता मालूम नहीं है।मंदिर, कथा-कीर्तन से पता लग जाता है कि भंवरे कौन है और मेंढक कौन है। भंवरे दूर से कथा सुनने आ जाते हैं और जो अभागे हैं पास में रहकर नहीं सुनते हैं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).