Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवत प्राप्ति की इच्छा क्यों उत्पन्न नहीं हो रही है? कथा भी सुन रहे हैं, सेवा भी कर रहे हैं, फिर भी क्या कारण है जो भगवान के दर्शन की व्याकुलता होनी चाहिए, नहीं हो पा रही है? भगवत प्राप्ति की सबसे बड़ी बाधा क्या है? भगवत प्राप्ति की सबसे बड़ी बाधा है, संत का अपराध, वैष्णव का अपराध, भागवतापचार।
सुनु सुरेश रघुनाथ सुभाऊ।
निज अपराध रिसाहिं न काऊ।।
जो अपराध भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई।।
ये भक्तापराध इतना भयानक है कि भगवान विष्णु के अपने पार्षद जय-विजय ने भक्तापराध कर दिया। सनकादिक पहुंचे, वेत लगाकर रोक दिया। बिना पूंछे चल दिये, हम द्वारपालों का क्या मतलब रहा? सनकादिकों ने कहा यह कानून तो पहली बार देखा गया। भगवान के यहां मना ही नहीं होती। संतो के लिए तो बिल्कुल मनाई नहीं है।
राम संत के पिता हैं संत राम के पूत।
संत न होते जगत में तो रहते राम निपूत।।
भगवान कण-कण में विराजमान है लेकिन उनके अस्तित्व को कौन प्रकट करते हैं? जो भगवान के अस्तित्व को प्रकट करते हैं, उन्हीं को संत कहा जाता है। संतो के अपराध से जय-विजय को राक्षस बनना पड़ा। संतों की सेवा से पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है। जीव का कल्याण होता है। भगवान के भक्तों तथा संत के अपराध से बचना चाहिए।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).