Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मानव के मन में हर समय एक ही भाव होना चाहिए, वह यह है कि देह रूपी धर्मशाला त्याग करके मेरे शाश्वत घर प्रभु चरण में मुझे पहुंचना है। अब मुझे गोलोकधाम में जाना है। अब मुझे बैकुंठ में जाना है। अब मुझे भगवान की लीला में जाना है।
अब मुझे प्रभु की नित्य सेवा में जाना है, इसीलिए अपने मन को दूसरे सारे संसार के जंजाल से हटाकर प्रभु के चरणों में लीन करना है। यह संसार माया की लीला है। माया की लीला में न किसी को शांति मिली है और न मिलेगी ही। माया सुख की अपेक्षा दुःख ही अधिक देती है।
ऐसी माया की लीला में फंसने के बदले जीव को प्रभु-लीला में ही रहना चाहिए, क्योंकि प्रभु-लीला इतनी दिव्य है कि वहां सुख भी नहीं है, दुख भी नहीं है, केवल आनंद ही आनंद है, क्योंकि वहां न काम प्रवेश कर सकता है और न काल प्रवेश कर सकता है। जहां काम आ सकता है, वहीं काल आ सकता है, जहां काम की गति नहीं है, वहां काल नहीं जा सकता।
भगवान के कैलाश धाम में, बैकुंठ धाम में, गोलोक धाम में, काल को प्रवेश मिल नहीं सकता। संसार काममय है, परमात्मा निष्काम है। इसीलिए परमात्मा के सामने काल टिक ही नहीं सकता। इसलिए मृत्यु मंगलमय हो जाय, यही इच्छा हो तो निष्काम परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ें।
संसार का सम्बन्ध तो एक न एक दिन छोड़ना ही है। यदि उस समय संसार के साथ बहुत ममता बांध रखी तो जीव को घबराहट होगी। परमात्मा के साथ का सम्बन्ध तो कभी भी छूटने वाला नहीं है। इसीलिए प्रभु के साथ प्रेम रखा होगा तो पछतावा नहीं आयेगा। इसलिए आज से ही प्रभु से प्रेम सम्बन्ध बढ़ाना आरम्भ कर दो।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).