Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, संयम जीवन कल्याण के लिए बहुत आवश्यक है। बलपूर्वक इंद्रियों को रोकने से कुंठाएं एवं विकृतियां होती हैं। अतः वासनाओं को उपासना के द्वारा परिवर्तित कर देना चाहिए। तपस्या व संयम इसीलिए है। मनुष्य का अन्तःकरण भागवदाकारकारित होना चाहिए। तभी जीवन में परिवर्तन आयेगा। ईमानदारी पूर्वक किया गया श्रवण, कीर्तन, पादसेवन मनुष्य को साधु बना देता है।
मनुष्य पाप तब करता है जब काम का विघात होता है, काम के विघात से क्रोध उत्पन्न होता है। समस्त पाप कामपूर्वक होते हैं। यहां काम शब्द का अर्थ संसार की किसी भी कामना से है। किसी भी वस्तु की अभीप्सा भी काम है। विषय चिंतन व संग से ही काम की उत्पत्ति होती है। किन्तु मनुष्य की दृष्टि क्या है? संसार का संग भी उपासना हो सकता है और माला फेरना भी दम्भ हो सकता है। अतः अपना दृष्टि भाव बदलना होगा, यह सब व्यक्ति के ऊपर ही निर्भर करता है। स्मरण करते-करते आदमी पवित्र हो जाता है, आचरण व व्यवहार में पवित्रता आ जाती है।
अन्तःकरण का परिवर्तन भगवत स्मरण से होता है। तब सभी क्रिया शास्त्रीय मर्यादा के अनुकूल स्वतः होने लगते है।भक्ति के मार्ग पर चलने के लिये भक्ति के उपरान्त शक्ति की भी जरूरत पड़ती है और मनोबल की भी जरूरत है। प्रभु का मार्ग शूरवीरों का है। जो कायर हैं उनका भक्ति मार्ग पर चलने का सामर्थ्य ही नहीं होता। युवावस्था में जब आपके पास शक्ति भी है ऐसी स्थिति में इस शक्ति का सदुपयोग करने की सच्ची समझ यदि विकसित हो जाती है तो मनुष्य अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंच जाता है।
युवकों के लिए सीढ़ी चढ़कर किसी भी द्वारा से किसी भी दिशा में अध्यात्म के मंदिर में प्रवेश करना मुश्किल नहीं है। सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो अध्यात्म का पथ सबके लिए ही है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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