Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान् का दिव्य स्वरुप है। श्रीमद्भागवत महापुराण में एक बहुत अच्छी बात कहते हैं। यदि हम आप उसे समझ सकें तो बहुत अच्छी बात है। वह बात यह है कि भक्त भगवन् की मूर्ति का ध्यान करता है, मंदिरों में जो मूर्तियां विराजमान हैं उनका ध्यान हम सब कर लेते हैं। यदि मन में मूर्ति बनाते हैं तो मूर्ति धुंधली, काली बनती है,
या तो मूर्ति बनती ही नहीं, यदि बनती भी है तो बिना प्रकाश के, बिना चमक के आकृति होती है। इसका कारण है कि- हृदय की मलिनता। जिस शीशे में आप अपना मुख देखते हो, उसमें दिन के बारह बजे सूर्य के दर्शन करना चाहो, तो आपकी आंखें खुली नहीं रह सकती, बंद हो जाएंगी, इतना तेज होता है। उसी शीशे पर थोड़ा सा कोयला तेल में मिक्स करके लेप दो, उसके बाद आपने सूर्य को देखा तो बिल्कुल किरणों से रहित एक गोल पिंड नजर आयेगा। दिन के बारह बजे देखो, किरणें नहीं होंगी।अब सूर्यनारायण ने अपनी किरणें स्वयं छुपा ली है या कोयले ने छुपा दी है?
कहा जायेगा कि किरणें तो हैं लेकिन कोयले ने किरणों को छुपा लिया है। आप कोयला साफ करो, जैसे-जैसे कोयला साफ होता जायेगा, सूर्य की किरणों की चमक तेज होती जायेगी और जब कोयला पूरा साफ हुआ, शीशा शुद्ध हुआ तो वो किरणें दिखेंगी की आंखें बंद हो जाएँ।इसी तरह भक्त जब भगवान के स्वरूप का ध्यान करता है, उसको विशेष सुंदर भगवान नहीं दिखते क्योंकि हृदय उसका मलिन है। भगवान में मैल नहीं है, ध्यान करने वाले के हृदय में मैल है। इसीलिए भगवान की सुंदरता उसके सामने वास्तविक रूप में प्रगट नहीं हो पाती।
साधना करते-करते जब हृदय निर्मल हो जाता है तब भगवान के स्वरूप का सर्वत्र दर्शन होने लगता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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