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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री शुकदेव जी का उपदेश- गृहस्थ जीवन में मोह पीछा नहीं छोड़ता। भगवान् का भजन बहुत करते हैं लोग पर संसार में मेरापन नहीं छूटता। जिसके जीवन से ” मैं ” और ” मेरापन ” निकल जाये उसके जीवन में दुःख कभी प्रवेश नहीं कर सकता। माया आंखों से नहीं दिखती, ” मैं ” और ” मेरा ” ही माया का स्वरूप है। रामायण में भगवान राम कहते हैं-
मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहिं बस किन्हें जीव निकाया।।
अहमता और ममता यही दुःखों का मूल है। यदि भगवान् के सही भावों को सुनना है तो एक सप्ताह का समय निकालकर बैठो आपका नुकसान नहीं होगा। शुकदेव भगवान दिगम्बर जा रहे हैं। पीछे से व्यास जी दौड़े – पुत्र ! पुत्र ! थोड़े दिन और रुक जाओ, तुम मेरे बड़े प्यारे पुत्र हो। कुछ दिन यहीं रह जाओ, विवाह कर दूं , पुत्र हो जाये, उसके बाद संन्यास ले लेना। श्री शुकदेव जी ने कहा- व्यास जी न मैं आपका पुत्र हूं, न आप मेरे पिता है। ये पिता और पुत्र का नाता मिथ्या है। इसके मूल में केवल मोह ही कारण है और मोह की उत्पत्ति अज्ञान से होती है। अज्ञान की निवृत्ति ज्ञान से होती है और ज्ञान की प्राप्ति सत्संग से होती है।
विनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).