भक्तों में ही होता है भक्ति का आनंद: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, रास पञ्चाध्यायी- जैसे छोटा बच्चा शीशे में अपने चित्र को देखकर नाचने लगता है। रास में शामिल भक्तों का हृदय शीशे की तरह शुद्ध और निर्मल हो गया था, उसमें झिलमिलाते कन्हैया स्पष्ट दिखते थे। जब श्रीकृष्ण उनके सामने जाकर खड़े हुए और उन्होंने अनेक रूपों में अपने को देखा- कितना सुंदर कृष्ण है और ये कितने उच्चकोटि के भक्त हैं, जिन्होंने अपने रोम-रोम में कृष्ण को बसा लिया है, ब्रह्मरस से अपने आपको परिपूर्ण कर लिया है।
भगवान व्यास भागवत में कहते हैं कि- जब जीव परमात्मा से अलग होने लगा, परमात्मा ने कहा कि एक कमी तुम अपने पास रख लो और एक कमी हमें दे दो। यदि तुम पूर्ण रहोगे, तुम्हें हमारी परवाह नहीं रह जायेगी और हम पूर्ण रहेंगे तो हमें तुम्हारी परवाह नहीं रहेगी। इसीलिए एक-एक कमी हम दोनों में रहे। जीव के अंदर भक्ति का आनंद है लेकिन पूर्णता नहीं है और भगवान के अंदर पूर्णता है लेकिन भक्ति का आनंद नहीं है, भक्ति का आनंद भक्तों में ही होता है। भगवान तटस्थ हैं,  निर्विकार हैं, कथा कीर्तन का आनंद भगवान के पास में नहीं है। जीव के अंदर रस है, रसग्राही भी है लेकिन जीव के अंदर पूर्णता नहीं है।
पूर्णता का मतलब वह स्थिति जब जीव कह दे कि अब कुछ नहीं चाहिये। ब्रह्म के अंदर पूर्णता है लेकिन कथा-कीर्तन का रस नहीं है। जब जीव भगवान का चिंतन करता है, परमात्मा का बनता है, तब धर्मशास्त्र कहते हैं कि- परमात्मा उसके लिए दौड़ते हैं। भक्त भगवान का चिंतन करता है तो भक्त में पूर्णता आ जाती है और भगवान को भक्तिरस मिल जाता है इसीलिए मिलकर भक्त और भगवान आनंद से नाच उठते  हैं क्योंकि तब आनंद और पूर्णता दोनों में आ जाती है। यही महारास है।
कंस का उद्धार एवं श्रीकृष्ण रुक्मिणी के मंगलमय विवाह कथा का गान किया गया। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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