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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ‘भोगा न भुक्ता स्वयमेव भुक्ता’ हम भोग भोगते हैं। शास्त्र कहते हैं कि आप भोग नहीं भोग रहे हैं, भोग आपको भोग रहे हैं। भोग संसार में ज्यों के त्यों बने रहेंगे पर भोगने वाला एक दिन भोगने लायक नहीं रह जायेगा। इंद्रियों में कभी तृप्ति नहीं होती और इनके कारण ही जीवन अशान्त बना हुआ है। भगवान व्यास ने भागवत में कहा भक्तों जब तक व्यक्ति का चित्त विषयों से जुड़ा है, तब तक जीवन में बन्धन है, दुःख है, अशान्ति है, नरक है।
जिस दिन चित्त विषयों से हट जायेगा, चित्त का विषयों से सम्बन्ध टूट जायेगा, उस दिन जीव अपने-आपको परमात्मा का अंश पायेगा, उस दिन उसके जीवन में ऐसा लगेगा कि- मैं ब्रह्मानंद में डूबा हुआ हूं। मेरे पास यही बैकुण्ठ आ गया है। जब व्यक्ति की अहंता और ममता मर जाती है। काम, क्रोध, लोभ, मद, उसके तिरोहित हो जाते हैं। आशा, तृष्णा उसकी क्षीण हो जाती है, उस समय वह ध्यान करता है तो अखंड ज्योति, अखंड आनंद, आत्मा और परमात्मा एक रूप में नजर आते हैं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अज