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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, विवेक आवश्यक- विवेक से थोड़ा सुख भी भोगना चाहिए और भक्तिमय जीवन यापन करके भगवान को भी प्राप्त करना चाहिए। शरीर में चाहे रहो, पर शरीर से अलग हो इस भावना से जिओ। मनुष्य चतुर तो है, पर बिना ठोकर लगे सयानापन नहीं आता।
जिसके जीवन में न कोई संयम है और न ही प्रभु भक्ति का कोई नियम, उसका जीवन बेकार है। यौवन हमेशा टिकने वाला नहीं है। सत्संग के बिना विवेक जागृत नहीं होता और स्वदोष का भान नहीं होता। यदि योग्य हो तो नई बात स्वीकार करो, किंतु पुराने को मत छोड़ो।
जीवन का लक्ष्य-
ईश्वर की उपासना रिद्धि-सिद्धि के लिए नहीं, हृदय की शुद्धि के लिए करो। प्रभु को खुश रखने का लक्ष्य रखकर ही प्रत्येक काम करो। हृदय यदि हमेशा भगवद् भाव में ही द्रवित रहता है तो पाप के विकार नष्ट होते हैं। प्रभु को राजी रखने के लिए की गई प्रत्येक व्यावहारिक प्रवृत्ति भी प्रभु की भक्ति ही है।
जिस तरह पैसा कमाने के लिए पसीना बहाते हो, उसी तरह परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भी पसीना बहाओ। जीव ईश्वर के साथ जैसा सम्बन्ध बाँधता है, वैसा सम्बन्ध ईश्वर टीकाए रखता है। कामनाओं को प्रभु के साथ जोड़ दो, निष्काम बन जाओगे।
श्राद्ध-
लड़के-लड़कियों पर मोह नहीं रखना चाहिये। विवेक रूपी लड़का ही सद्गति दिलाता है। हमें अपना उद्धार आप करना है। सद्गति पुत्र से नहीं, सत्कर्म से प्राप्त होती है। शरीर को परोपकार एवं परमात्मा के काम में हवन कर देना ही सच्चा पिण्डदान है। आप अपना श्राद्ध खुद ही करो। श्रद्धा पूर्वक किया गया सत्कर्म ही श्राद्ध है। सत्कर्म से सद्गति प्राप्त होती है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).