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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
मार्केट एक्सपर्ट्स ने वैश्विक अनिश्चितता और अमेरिकी टैरिफ के कारण भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट पर सोमवार को कहा कि अस्थिरता के बीच लंबी अवधि के नजरिए से ही निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिल सकता है. अमेरिका की ओर से रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए जाने के कारण वैश्विक बाजारों के साथ भारतीय बाजारों में भी गिरावट देखने को मिल रही है. निवेशय के संस्थापक और स्मॉलकेस मैनेजर अरविंद कोठारी के मुताबिक, घबराना कभी भी कोई रणनीति नहीं होती है और ऐसे बाजार में बुनियादी बातों पर टिके रहना महत्वपूर्ण है.
अरविंद कोठारी ने आगे कहा, हम निवेशकों से शांत और केंद्रित रहने का आग्रह करते हैं और छोटी अवधि की अनिश्चितताओं के बीच जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें. हालांकि, यह निर्धारित करना कठिन है कि कौन से क्षेत्र पहले उबरेंगे, लेकिन एफएमसीजी और उपभोग जैसे घरेलू-केंद्रित क्षेत्र निकट भविष्य में बेहतर स्थिति में दिखाई देते हैं. अरविंद कोठारी के अनुसार, निर्यात आधारित या वैश्विक रूप से जुड़े क्षेत्रों में रिकवरी में समय लग सकता है.
जैसे-जैसे नीतियों में स्पष्टता आती है, मजबूत व्यवसाय रिकवरी करेंगे और लंबी अवधि में वैल्यू क्रिएट करेंगे. मिराए एसेट कैपिटल मार्केट्स के मुख्य रणनीति अधिकारी और निदेशक मनीष जैन ने कहा, अगर निफ्टी की ईपीएस में 10% से अधिक की गिरावट आती है, तो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का सूचकांक 20,000 के नीचे जा सकता है. इस कारण से आने वाली तिमाही में कंपनियों की आय पर काफी करीबी से निगाह रखनी होगी.
भारत की जीडीपी ग्रोथ लंबी अवधि में उच्च स्तर पर बनी रहेगी. वित्त वर्ष 25 में देश की जीडीपी के 6.5% की दर से बढ़ने का अनुमान है. उन्होंने आगे कहा, भारत का जीडीपी-टू-डेट रेश्यो वित्त वर्ष 2024-25 से लेकर वित्त वर्ष 2030-31 के बीच 5.1% गिरने की संभावना है। ऐसे में एफपीआई के लिए भारत एक अच्छा स्थान होगा. क्वांटेस रिसर्च के स्मॉलकेस मैनेजर और संस्थापक कार्तिक जोनागदला ने कहा, हमारा मानना है कि निजी बैंक, एफएमसीजी, ओएमसी और पेंट्स क्षेत्र रिकवरी में अग्रणी रहेंगे, जबकि आईटी क्षेत्र के कमजोर रहने की उम्मीद है.